सवाल (7): सीरिया में बाग़ी लोगों की आपसी लडा़ई की क्या हक़ीक़त हैं?
जवाब : 'आइ.एस.आइ.एस'' नाम की संस्था के गलत फैसलो की वजह से ही बाग़ीयों में आपस में नाइत्तेफाकी पैदा हुई। उनके कुछ अमल की वजह से बाग़ी गिरोह उनके खिलाफ हुए है। कुछ बाग़ी गिरोह ने आइ.एस.आइ.एस से इस बात पर ज़िद की, कि वोह सीरिया के दूसरे गिरोह से मिलकर अलवी हुकूमत को गिराने में संघर्ष करें ताकि बाद में इस्लामी रियासत क़ायम कर सकें। लेकिन आइ.एस.आइ.एस का तरीका यह था कि, जो भी इलाक़े उसके क़ब्जें में आते वोह उन पर हुकूमत और क़ायदे क़ानून लागू करना शुरू कर देता था। इसकी वजह से एक खास वाक़िआ पेश आया, जिससे आपस में टेंशन पैदा हुई।
वाक़िआ कुछ इस तरह से है कि, अतारीस के इलाक़े में आइ.एस.आइ.एस के कुछ लोग एक आदमी को गिरफ्तार करने के लिए घुस गए। इस आदमी का सम्बन्ध भी किसी दूसरे गिरोह से था, लोगों ने उस आदमी को देने से मना कर दिया और कहा कि जब तक शरई अदालत नही होगी तब तक यह तनाव खत्म नही होगा और अभी शरई अदालत नही बनी है इसलिए हम अभी तुम्हे आदमी नही सौपेंगे। आखिर में आइ.एस.आइ.एस के लोगों ने उस आदमी को ज़बरदस्ती किडनेप करके, उसका क़त्ल कर दिया और उसकी लाश को रोड़ के एक तरफ फैंक दिया। इससे लोगों को आइ.एस.आइ.एस पर बहुत गुस्सा आया, बाद में लोगों ने आइ.एस.आइ.एस को कई इलाक़ो में दाखिल होने से मना कर दिया और अंदरूनी लडा़ई की भी नौबत आने लगी।
सन 2013 के गर्मीयो के मौसम से ही सीरिया के कुछ इलाक़ो पर आइ.एस.आइ.एस का क़ब्जा हो चुका था जिसमें अतमेंह, अलबाब, एजाज, मनबिज और जराबलस नाम के इलाक़े शामिल हैं। इस गिरोह ने इन जगहो कों काफी नियंत्रित (कंट्रोल) किया हुआ था कि, कोई भी चीज़ इनकी मर्जी़ के बिना वहाँ से आ जा नही सकती थी, इस बात से भी इस गिरोह और बाक़ी दूसरें बीच में नाइत्तेफाकी होती रही। इस तरह दूसरे गिरोहों ने इसको डांटना और इसके खिलाफ सख्त लेहज़ा अपनाना शुरू किया।
इसी दौरान दिसम्बर 2000 में, कई इलाक़ो में बागीयों के दर्मियान आपसी लडा़ईयां शुरू हुई और आइ.एस.आइ.एस ने ''अहरार अल शाम'' के कमाण्डर ''अबू रय्यान'' का क़त्ल किया मगर जब लोगों ने इसका कारण जानना चाहा तो उन्होंने कोई खास वजह नही बताई। कई बार लोगो ने उनके बीच सुलह की बात भी रखी जिस पर भी वोह राज़ी नही हुए। इन सब बातो से ज्ञात होता है, कि यह लोग अपने तरीक़े से ही मामलात चलाना चाहते हैं। इसके नाम से ही इस गिरोह की हक़ीक़त, पता लगती हैं। इसका नाम इस्लामी स्टेट ऑफ ईराक़ एण्ड शाम (ईराक़ और शाम की इस्लामी रियासत) है। यह गिरोह एक ऐसे राजनीतिक वजूद के रूप में सामने आया, जो अपने क़ाबिज़ इलाक़ो को रियासत की तरह चलाना चा रहा हैं। यह खुद की समझ के मुताबिक इस्लाम लागू करतें हैं। इस तरह, इनके नज़रिए से इख्तिलाफ रखने वालों को मुर्तद क़रार दिया जाता हैं या फिर उसे सज़ाए मौत दी जाती हैं। इन्होंने कई टैक्स भी लगाने शुरू कर दिए हैं, जिनमें तुर्की कें बॉडर्स के इलाक़े से बुनियादी ज़रूरत के सामान व चीज़ों को लाने ले जाने पर भी टैक्स लगातें है।
इस गिरोह में ज़्यादातर फौज से आए लडा़कू लोग हैं जिन्हे लड़ते-लड़ते 10-15 साल हो गए हैं। इन्होंने खुद ही जज व क़ाजी की तरह फैसले करना और माल की तक्सीम करना शुरू दिया, इसके विपरीत उन्हें वहाँ के मक़ामी लोगों को चुन कर सही तरीके से एक संघठित गिरोह बनाना चाहिए था। इन्होंने लक्ष्य पूरा किए बग़ैर और बिना क़ाबिल लोगों को साथ लिए अपनी समझ के मुताबिक़, इस काम को शुरू कर दिया। इसके नतीजे में जब इन्हे मनचाहा परिणाम नही मिला, तो इन्होंने बन्दूक के दम पर अपने अपनी बात मनवाना शुरू दी। इन सबका फायदा बशर उल असद की सरकार को मिला। इसीलिए यह गिरोह पहले के मुकाबले में और कमज़ोर हो गया।
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