बंदे के उस फे़अल पर, जिस से शारेअ का ख़िताब मुताल्लिक़ है, महकूम फिही का इतलाक़ होता है। शरई दलाइल के इस्तिक़रा से फे़अल की तकलीफ़ (legal responsibility of the act) सही होने की मुन्दर्जा ज़ैल शराइत मंज़रे आम पर आती हैं:
1) शारेअ ने फे़अल को बयान किया हो, वर्ना उसका हिसाब नहीं होगा।
وَمَا كُنَّا مُعَذِّبِينَ حَتَّىٰ نَبۡعَثَ رَسُولاً۬
और हमारी सुन्नत नहीं कि रसूल भेजने से पहले ही अज़ाब करने लगें (अल इसरा-15)
2) बंदा उस फे़अल को सरअंजाम देने पर क़ादिर हो।
لَا يُكَلِّفُ ٱللَّهُ نَفۡسًا إِلَّا وُسۡعَهَاۚ
अल्लाह किसी जान को उसकी ताक़त से ज़्यादा तकलीफ़ नहीं देता (अल बक़राह-286)
3) ये फे़अल अल्लाह और उसके रसूल की तामील में किया गया हो, वर्ना ये क़बूल नहीं किया जाएगा।
فَلَا وَرَبِّكَ لَا يُؤۡمِنُونَ حَتَّىٰ يُحَكِّمُوكَ فِيمَا شَجَرَ بَيۡنَهُمۡ
(कसम है तेरे परवरदिगार की! ये मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि तमाम आपस
के इख़्तिलाफ में आप को फ़ैसला करने वाला ना मान लें)
4) वो अफ़आल जो हुक़ूकु अल्लाह की ज़िमन में आते हैं और उन पर सज़ाएं मुरत्तिब होती हैं जैसे हदूद, तो उन हुक़ूक़ को, बंदे की माफ़ी से, साक़ित नहीं किया जा सकता ।
أتشفع فی حد من حدود اللّٰہ ؟.....و ایم اللّٰہ لو أن
فاطمۃ بنت محمد سرقت لقطعت یدہا
(मुत्तफ़िक़ अलैह)
क्या तुम अल्लाह की मुक़र्रर कर्दा सज़ाओं के मुआमले में मेरे सामने सिफ़ारिश लेकर आए हो?....
फिर आप صلى الله عليه وسلم ने अल्लाह की कसम खा कर कहा कि अगर मुहम्मद की बेटी फ़ातिमा भी चोरी करे तो उसका हाथ काट दिया जाएगा
वो अफ़आल जो हुक़ूक़ुल इबाद में से हों और उन पर सज़ाएं मुरत्तिब की जाएं जैसे क़िसास या दिअत, तो इन में बंदे को, अहकामे शरईया के मुताबिक़, माफ़ करने का इख़्तियार हासिल है।
يَـٰٓأَيُّہَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُواْ كُتِبَ عَلَيۡكُمُ ٱلۡقِصَاصُ فِى ٱلۡقَتۡلَىۖ ٱلۡحُرُّ بِٱلۡحُرِّ وَٱلۡعَبۡدُ بِٱلۡعَبۡدِ وَٱلۡأُنثَىٰ بِٱلۡأُنثَىٰۚ فَمَنۡ عُفِىَ لَهُ ۥ مِنۡ أَخِيهِ شَىۡءٌ۬ فَٱتِّبَاعُۢ بِٱلۡمَعۡرُوفِ وَأَدَآءٌ إِلَيۡهِ بِإِحۡسَـٰنٍ۬ۗ
ऐ ईमान वालो! तुम पर मक़्तूलों का क़िसास लेना फ़र्ज़ किया गया है, आज़ाद के बदले आज़ाद, ग़ुलाम ग़ुलाम के बदले, औरत औरत के बदले, हाँ जिस किसी को उसके भाई की तरफ़ से कुछ माफ़ी दे दी जाये उसे भलाई की इत्तिबाअ करनी चाहिए और आसानी के साथ दिअत अदा करनी चाहिए (अल बक़राह-178)
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