शरई दलायल

शरई दलायल
दलील की तारीफ़: 

ھو الذي یمکن بہ یتوصل الی العلم بمطلوب خبري و بعبارۃ أخری ھو الذي یتخذ حجۃ علی أن المبحوث عنہ حکم شرعي
(वो जिस से मतलूब ख़बर के बारे में इल्म तक पहुंचना मुम्किन हो, दूसरे लफ़्ज़ों में वो जिस से मबहूस के बारे में ये हुज्जत ली जाये कि वो हुक्मे शरई है)

दलील की चार अक़साम हैं:

1) वो जो सबूत और दलालत, दोनों में क़तई हो। ये दलील क़तई है।
2) वो जो सबूत के ऐतबार से क़तई हो मगर दलालत में ज़न्नी। ये दलील ज़न्नी है।
3) वो जो सबूत के ऐतबार से ज़न्नी हो मगर दलालत में क़तई। ये दलील ज़न्नी है।
4) वो जो सबूत और दलालत, दोनों में ज़न्नी हो। ये दलील ज़न्नी है।

उसूल में क़तई दलायल का वजूब:

शरई दलायल अहकामे शरईया के उसूल हैं, इसलिए, उसूले दीन (अक़ीदा) की तरह, उनका भी क़तई होना वाजिब है। ये इसलिए क्योंकि शरीयत के उसूल, चाहे वो उसूले दीन में से हों या उसूले अहकाम में से, इन में ज़न नाजायज़ है । चुनांचे इस में किसी ज़न्नी दलील का ऐतबार हर्गिज नहीं किया जा सकता, बल्कि उन की दलील सिर्फ़ क़तई हो सकती है। ये इसलिए ताकि इस बात का यक़ीन हो कि जिन माख़ज़ के ज़रीये हमे अल्लाह की इबादत करनी है, वो क़तई तौर पर अल्लाह की जानिब से हैं यानी वह्यी। अगर उसूल में ज़न की इजाज़त हो, तो उसकी बदौलत उसूले दीन में ही इख़्तिलाफ का एहतिमाल होगा और ये बातिल है। अल्लाह سبحانه وتعال का फ़रमान है:

وَلَا تَقۡفُ مَا لَيۡسَ لَكَ بِهِۦ عِلۡمٌۚ
उस बात की पैरवी मत करो जिस का तुम्हें इल्म नहीं (अल इसरा-36)


وَمَا يَتَّبِعُ أَكۡثَرُهُمۡ إِلَّا ظَنًّاۚ إِنَّ ٱلظَّنَّ لَا يُغۡنِى مِنَ ٱلۡحَقِّ شَيۡـًٔاۚ
इन में से अक्सर ज़न की पैरवी करते हैं बेशक ज़न हक़ के सामने कुछ मददगार नहीं (यूनुस-36)

पस शरई दलायल यानी शरई माख़ज़ फ़क़त चार हैं क्योंकि सिर्फ़ इनके दलायल क़तई हैं, यानी यही क़तई तौर पर वह्यी हैं और वो तरतीब के लिहाज़ से ये हैं: क़ुरआन, सुन्नत, इज्मा ए सहाबा और क़ियास

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