जवाब : इराक़ और सीरिया की बगावतें समय के साथ से अलग-अलग चरणो में पहुंचती रही हैं। इस बीच कई तरह की खबरें आती रही हैं जिसमें एक खबर यह भी हैं कि वहाँ खिलाफत क़ायम हो गई हैं। कुछ जिहादी गिरोहों के हाथ सीरिया के कुछ इलाक़े कब्जे़ में आए, तो उन्होंने कुछ सामान और खाने-पीने की चीज़ों को लोगों में बांटना शुरू किया और अदालतें बनाकर लोगों के झगड़ो को सुलझाना शुरू किया, इसको मीडिया ने इस रूप में पेश किया कि वहाँ खिलाफत क़ायम हो गई हैं। यह बात सच थी कि इन ज़्यादातर गिरोहों का मकसद खिलाफत क़ायम करना था। आइ.एस.आइ.एस नाम के गिरोह पर भी इस बात का इल्जाम लगाया गया हैं कि उसने कई बार अपने ईलाक़े में खिलाफत के क़याम का ऐलान किया जबकि हक़ीक़त यह हैं कि इस तरह के बयानात उसकी तरफ से नही आए हैं बल्कि उनके प्रतिनिधी ने ऐलान किया कि हम इस्लामी खिलाफत नही बल्कि इस्लामी ईमारत क़ायम करना चाहते हैं। वही बात जो तालिबान ने अफगानिस्तान में की थी।
उनके एक लीडर अबू अब्दुल्लाह अनीस, ने खुले तौर पर यह बात कही थी कि ''हम सीरिया में इस्लामी ईमारत क़ायम करना चाहते हैं।'' उनकी एक जिहादी मैग्जिन ''मजल्लाह अल बलाग'' में यह बात प्रकाशित हुई थी कि ''सीरिया के सभी विद्रोही गिरोहो हैं को मिलाकर एक संघठन और एक शरीया बोर्ड बनायेंगे जो बाद में इस्लामी इमारत को क़ायम करेगी'' जबकि हक़ीक़त यह हैं कि यह गै़र-शरई हैं। इस्लाम में इस्लामी ईमारत जैसा काई तसव्वुर नही हैं। इस्लामी ईमारत से मुराद (तात्पर्य) हैं कि एक छोटे से ईलाक़े की सीमा (बॉडर) मान कर उसमें इस्लामी शरीअत लागू की जाऐ और दूसरे इलाक़ो से शरियत के मामले में कोई सरोकार नही रखा जायेंगा। इस्लामी खिलाफत कभी किसी सरहदों में कै़द नही होती हैं बल्कि लगातार बढ़ती हैं। दलायल से यह बात साबित हैं कि इस तरह की कोई ईमारत नही होती ।
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