क़ुरआन:

क़ुरआन:
क़ुरआन की तारीफ़: 

ھو کلام اللّٰہ المنزل علی رسولہ محمد ﷺ بواسطۃ الوحي جبریلؑ ، لفظا و معنی، المعجز، المتعبد بتلاوتہ و المنقول لنا نقلا متواترا
(वो कलामुल्लाह, जो अल्फाज़ और मानी में, उसने अपने रसूल मुहम्मद صلى الله عليه وسلم पर, जिब्रील के ज़रीये नाज़िल किया, जो मोजिज़ा है और जिस की तिलावत के ज़रीये इबादत होती है और (ये) हम तक तवातुर से मनक़ूल है)

क़्रुरआने पाक का कलामुल्लाह होना अक़्ल से साबित है क्योंकि इस में अल्लाह سبحانه وتعال ने सब इंसानों को तहद्दी की है कि वो उस जैसी एक सूरत पेश कर दें, मगर इंसान इस से क़ासिर रहा है। अगरचे ये तहद्दी क़ियामत तक बाक़ी रहेगी, मगर जो लोग लुगत के मेहरीन थे यानी इस दौर के अरब क़बाइल, बिलख़सूस क़ुरैश, वो इस जैसे बुलंद मअयार का कलाम नहीं ला सके तो ये मुहाल है कि उनके बाद किसी के लिए ये मुम्किन हो। ये तहद्दी क़ुरआन की फ़साहत-व-बलाग़त और उस्लूब-व-नज्म के ऐतबार से की गई है, अल्लाह سبحانه وتعال का फ़रमान है:


وَإِن ڪُنتُمۡ فِى رَيۡبٍ۬ مِّمَّا نَزَّلۡنَا عَلَىٰ عَبۡدِنَا فَأۡتُواْ بِسُورَةٍ۬ مِّن مِّثۡلِهِۦ وَٱدۡعُواْ شُهَدَآءَكُم مِّن دُونِ ٱللَّهِ إِن كُنتُمۡ صَـٰدِقِينَ

अगर तुम्हें इस में शक है जो हम ने अपने बंदे पर नाज़िल किया है तो उस जैसी एक सूरत तो ले आओ और बुला लो अपनी मदद के लिए सब को सिवाए अल्लाह के, अगर तुम सच्चे हो (अल बक़राह-23)

क़ुरैश सर तोड़ कोशिश के बावजूद, इस मअयार का कलाम पेश करने से आजिज़ रहे जो कि तवातुर से साबित है। अलावा अज़ीं इस के बाद भी इस तहद्दी का मुआरिज़ा पेश करने की कोशिशें जारी रहें, मगर सब नाकाम । और रसूलुल्लाह जब किसी आयत या सूरत की तिलावत फ़रमाते तो फ़ौरन हदीस भी कहते। जब हम क़ुरआन और हदीस (मुतवातिर) का मुवाज़ना करते हैं तो इन में कोई मुशाबिहत नहीं पाते। इंसान अपने उसलूब को जितना चाहे बदलने की कोशिश करे मगर थोड़ी बहुत मुशाबिहत हमेशा रहेगी, जब कि क़ुरआन और हदीस में ऐसी कोई मुशाबिहत नहीं पाई जाती । ये तमाम बातें क़ुरआन के मोजिज़ा होने के अक़्ली दलायल हैं और इस बात के कि ये कलाम क़तई तौर पर अल्लाह سبحانه وتعال का है यानी क़ुरआन अल्लाह سبحانه وتعال की नाज़िल कर्दा किताब है। चूँकि ये किताब, पूरी इंसानियत के लिए, रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم लेकर आए हैं इसलिए ये आप صلى الله عليه وسلم का मोजिज़ा है और आप صلى الله عليه وسلم की रिसालत की क़तई दलील भी।
इस के अलावा बज़ाते ख़ुद क़ुरआन से ये साबित है कि ये, रसूलुल्लाह صلى الله عليه وسلم की तरफ़ भेजी गई वह्यी है :

وَإِنَّكَ لَتُلَقَّى ٱلۡقُرۡءَانَ مِن لَّدُنۡ حَكِيمٍ عَلِيمٍ
बेशक आप को अल्लाह हकीम-व-अलीम की तरफ़ से क़ुरआन सिखाया जा रहा है (अल नमल-6)

إِنَّا نَحۡنُ نَزَّلۡنَا عَلَيۡكَ ٱلۡقُرۡءَانَ تَنزِيلاً۬
बेशक हम ने आप पर ब तदरीज क़ुरआन नाज़िल किया है (अल इंसान-23)

إِنَّآ أَنزَلۡنَـٰهُ قُرۡءَٲنًا عَرَبِيًّ۬ا لَّعَلَّكُمۡ تَعۡقِلُونَ
यक़ीनन हम ने इस को कुरआने अरबी नाज़िल फ़रमाया है ताकि तुम समझ सको (यूसुफ-2)

ये आयात इस बात के क़तई समई दलायल हैं कि क़ुरआन को अल्लाह سبحانه وتعال ने वह्यी के ज़रीये नाज़िल किया है, चुनांचे क़ुरआन एक शरई माख़ज़ है।

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