क्या सीरिया में वक़्त की धारा पश्चिम के खिलाफ बह रही है?
(आबिद मुस्तफा)
उफुक उल्ताज ने कहा ''अमरीका और पश्चिम विपक्षी दल के राजनीतिक तौर पर संघठित होने या मिलिट्री मदद हासिल करने का इंतजार नहीं कर रहा है बल्कि इस बात का इंतजार कर रहा है के वोह साफ तौर पर देखे के सीरिया में कौन जीतता है और कब जीतता है । इस तरह से वोह इंतजार करके सीरिया में भी हार जायेंगे और इस इलाके में भी हार जायेंगे। "
अगर सीरिया की इस जंग को शुरू से देखा जाये तो देखने से ऐसा लगता था या अगर यह कहा जाता कि पश्चिमी ताकते असद की मदद कर रही है तो कुछ ही लोग इस बात पर यकीन करते। 30 महीने गुजरने के बाद अब यह बात पूरी तरह से साफ हो गयी है के अमरीका और उसके पश्चिमी इत्तिहादी ना सिर्फ असद की जालिमाना हुकूमत का सहयोग कर रहे है बल्कि वोह उम्मीद लगाए हुई है की असद विपक्षी दल के खिलाफ इस जंग में विजयी हो जाए ।
पिछले महीने ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविट केमरॉन ने बी.बी.सी. में कहा के ब्रिटेन सीरिया के विपक्षी दल को हथियार मुहैया नहीं करेगा। क्योंकि उसमें कई तत्व ऐसे है जो पश्चिम के लिए बहुत शिद्दतपंसद (कट्टरवादी) है और उसका अंदाजा यह है के असद पहले के मुकाबले में अब ज़्यादा ताकतवर हो गया है। उसने कहा ''मैं समझता हॅू के अब वह (असद) पिछले महीनों के मुकाबले में ज़्यादा ताकतवर है, लेकिन मैं अब भी इस सूरतेहाल को एक स्टेलमेंट की (उलझी हुई) स्थिति कहूंगा यानी बीच की स्थिति जिसमें दोनों पक्षों में से कोई कामयाब नहीं हो रहा है। और यकीनन हमें विपक्षी दल के ऐसे हिस्से से परेशानी है से जो कि शिद्दतपंसद है और जिससे हमारा कोई ताल्लुक नहीं है।''
अमरीका ने भी सीरिया के हालात के बारे में इसी तरह की बातो का अंदाजा लगाया है और यही बात कही है। जर्नरल मार्टिन डेमसिन ने जो कि यू.एस. चीफ ऑफ स्टाफ के चेयरमैन है, ने जुलाई 18, 2013, को कहा ''हाल ही में यह बहाव इस वक़्त असद के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है।''
यहाँ तक की अमरीका की डिफेंस इंटेलिजेंस ऐजेंसी ने अपने पुराने अन्दाज़े मे दोबारा परिवर्तन किया, जिसमे उन्होने असद की हुकूमत इस साल की शुरूआत तक गिरने का अन्दाज़ा लगाया था. डिफेन्स इंटेलीजेंस के डिप्टी डायरेक्टर डेविट शेड ने कहा ''मेरी चिंता यह है के यह बहुत लम्बे समय तक चल सकता है . . . . और यह लम्बे समय तक चलने वाली एक उलझी हुई हालात है।''
सौ यह कैसे मुमकिन है के असद जिसकी हुकूमत गिरने के बिल्कुल करीब थी वोह अब लम्बे समय तक सत्ता में क़ायम रह सकता है?
ऐसा सिर्फ इसलिए मुमकिन हो सकता है के उसको बाहरी ताकतों ने मिलकर उसके साथ साज़-बाज़ की और वोह एक दूसरे की मदद करते रहे ताकि असद की ज़ालिमाना हुकूमत को बाकि रखा जा सके। सीरिया के इस्लामी क्रांती को पश्चिमी स्वार्थों के मुताबिक मोडने और बदलने के बारे मे कई राजनीतिक प्रस्तावों के फैल होने के बाद जैसे कि कोफीअन्नान का 6 पोइन्ट प्लान, लख्तर इब्राहिमी का प्लान और अभी काफी दिनों से चल रही जिनेवा वार्तालाप यह सब जानबूझ के चलाई गई थी। यह सारी राजनीतिक प्रकिया असद के लिए समय खरीदने के लिए रची गई थी ताके असद को जो इस्लामी विपक्षी दल के हाथो शिकस्त हुई है उसकी भरपाई की जा सके और उन्होंने जो कुछ भी जंग के हालात में हासिल किया है उसको असद के हित (फेवर) में बनाया जा सके। असद ऐसा कभी भी हासिल नहीं कर सकता जब तक कि उसको वाशिंटन का गहरा समर्थन ना हो और उसको लगातार रूस से मिलने वाली सफ्लाई ना हो और चीन की यूनाईटेट नेशन (संयुक्त राष्ट्र संघ) मे हठधर्मी ना हो और इजराईल की तरफ से हवाई हमले ना हो ताके वोह विपक्षी गिरोह को रोक सके के वोह हस्सास और महत्वपूर्ण हथियार अपने कब्ज़े में ले सके और ईरान और हिजुबुल्लाह की तरफ से लगतार हठधर्मी के साथ मदद ना मिल रही हो।
इस राजनीतिक शक्ति रखने वाले इस अजीब गिरोह की तरफ से और उनके एजेण्टो की तरफ से मदद मिलना और असल में अमरीका की मज़बूज़ कोशिशो की वजह से है के वोह सीधे तौर पर इस झगडें में शामिल ना रहे। जो बात सबसे ज़्यादा दुनिया की महाशक्तियों को मुत्तहिद करती है उसमें इजराईल को शामिल करती है, और ईरान हुकूमत को इज़राईल जैसे कांटे के दुश्मन के साथ इत्तिहाद बनाने पर मजबूर करती है और जी.सी.सी. और हिज़बुल्लाह सब मिलकर एक दूसरे का साथ देते है वोह वजह है खिलाफत की वापसी जो कि सीरिया के मुख्लिस मुसलमानों के हाथों क़ायम हो सकती है। मिसाल के तौर पर सीरिया के जिहादी ग्रुप जुब्बतुल नुसरा (अल नुसरा फ्रंट) के लीडर ने हाल ही में यह ऐलान किया के उसका गिरोह इस्लामी खिलाफत को सीरिया में क़ायम करने के पक्ष में है। यही वोह साफ तौर पर ऐलान है जिसने कैमरॉन, ओबामा, पुतीन नीतिनयाहो और उनकी एजेण्ट हुक्मरां जैसे तेहरान और उनकी गल्फ कन्ट्रीज़ (खाडी देशों) की राजधानियों को परेशान कर दिया है। हक़ीक़त में सीरिया में जो हाल हो रहा है वोह एक ऐसी जंग है जो एक निहत्ती मुस्लिम कौम के खिलाफ विश्व युद्ध की शक्ल ले चुकी है एक! 30 महीने से लगातार एक खतरनाक जंग छेडने के बाद अमरीका और उसके इत्तेहादी इस बग़ावत को कुचलने में नाकामयाब रहे। बल्के पश्चिमी लीडर इस बात को क़बूल करने में जल्दी की है के सीरिया में एक ऊलझी हुए हालात पैदा हो गई है। यही वोह बात है जिससे मुस्लिम उम्मत का दिल बहुत ही ज़्यादा खुश होता है और अक्सर वोह दक्यानुसी बात और वोह तस्वीर जो पेश की जाती है के मुसलमान अमरीका के खिलाफ खडे़ होने के लिए बहुत कमज़ोर है उसका पर्दा चाक हो जाता है।
सीरिया की यह जंग इसके बिल्कुल विपरीत तस्वीर पेश करती है, जब अमरीका का इराक़ और अफगानिस्तान में फैल हो जाना, और मुस्लिम हुक्मरानों के कमज़ोर और नाकिस बहानो को खोलकर रख देती है के वोह अमरीका के खिलाफ नहीं लड़ सकते। हक़ीक़त में यह पश्चिम के सामने अपने आपको छोटा समझने के तसव्वुर (अवधारणा) को ही चुनौती दी गई है और इसे सीरिया में एक तरफ हटा दिया गया है और इसके साथ-साथ बाकी की मुस्लिम दुनिया भी इसके पीछे चल रही है।
जैसे-जैसे मुस्लिम दुनिया अपनी सियासी इस्लाम की मोहब्बत में आवामी तौर पर खुलकर सामने आ रही है और अपने हौसलों का खुलकर बयान कर रही है या तो अहिंसावादी तरीको से या वैलेट बॉक्स यानी चुनाव के तरीको से या हथियार उठाकर, इससे सेक्यूलर व्यवस्था जिसका लीडर पिछले 90 सालों से पश्चिम है, वोह अपने आपको असुरक्षित और अव्यवस्थित मेहसूस कर रही है। यह कोई हैरत की बात नहीं होगी के सीरिया खिलाफत के दायरे में आने वाली सबसे पहली हुकूमत होगी। सबसे बडी़ असल शिकस्त जो उन दुनिया की महाशक्तियों की होगी जिन्होंने अपनी पूरी राजनीतिक ताकत और मिलिट्री ताकत लगाने के बावजूद भी इसको पहले दर्जे़ में ही रोकने में नाकामयाब रही।
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