किसी चीज़ के जायज़ होने का मतलब हर्गिज़ ये नहीं है कि इस से मुताल्लिक़ा तमाम अफ़आल ख़ुदबख़ुद जायज़ हो जाएंगे, बल्कि हर फे़अल के लिए दलील दरकार है। उसकी वजह ये है कि हुक्मे शरई, बंदों के अफ़आल से मुताल्लिक़ शारेअ का वो ख़िताब है जो उनके मुआलिजात (मसाइल के हल) के लिए वारिद हुआ है, ना कि अशिया के लिए। अशिया का काम तो फ़क़त अफ़आल के दौरान इस्तिमाल होना है, लिहाज़ा ख़िताब का असल अफ़आल हैं, जब कि अशिया बंदों के अफ़आल के ताबे हैं, चाहे ये ख़िताब में मज़कूर हों या नहीं। मसलन कपड़ा अशिया के आम हुक्म के मुताबिक़ मुबाह है, मगर इस बात से उसकी तिजारत का फे़अल, ख़ुदबख़ुद जायज़ नहीं हो जाएगा, बल्कि पहले तिजारत के फे़अल का हुक्म मालूम किया जाएगा :
وَأَحَلَّ ٱللَّهُ ٱلۡبَيۡعَ
अल्लाह ने तिजारत को जायज़ क़रार दिया है (अल बक़राह-275)
तिजारत के फे़अल का जवाज़ हमें इस आयत से मिलता है, लिहाज़ा चूँकि कपड़े की इबाहत भी साबित है, इसलिए कपड़े की ख़रीद और फ़रोख़्त मुबाह ठहरी। ये इस फे़अल का हुक्म है।
इसी तरह मसलन पिस्तौल (pistol) एक मुबाह चीज़ है क्योंकि उसकी हुर्मत पर कोई दलील मौजूद नहीं है। मगर किसी मुसलमान को इस से क़त्ल करने का फे़अल हराम है।
وَمَن يَقۡتُلۡ مُؤۡمِنً۬ا مُّتَعَمِّدً۬ا فَجَزَآؤُهُ ۥ جَهَنَّمُ
और जो कोई किसी मोमिन को क़स्दन क़त्ल कर डाले तो उसकी सज़ा दोज़ख़ है (अन्निसा-93)
अफ़आल का क़ायदा:
الأصل في الأفعال التقید بالحکم الشرعي
(अफ़आल में हुक्मे शरई की पाबंदी की जाएगी)
लिहाज़ा इंसान के लिए, ना तो तमाम अफ़आल बुनियादी तौर पर जायज़ हैं और ना ही हराम, बल्कि हर फे़अल की अंजाम देही से पहले उसका हुक्म तलाश किया जाएगा और उसकी पाबंदी लाज़िम होगी। हर हुक्म अपनी (शरई) दलील पर मबनी है। इस क़ाईदे के दलायल मुन्दर्जा जे़ल हैं:
فَوَرَبِّكَ لَنَسۡـَٔلَنَّهُمۡ أَجۡمَعِينَ (* ٩٢ ) عَمَّا كَانُواْ يَعۡمَلُونَ ٩٣
क़सम है तेरे रब की! हम इन सब से ज़रूर बाज़पुर्स करेंगे, हर उस अमल की जो वो करते थे (अल हिज्र-92,93)
यानी अल्लाह سبحانه وتعال हमारे तमाम अफ़आल का हिसाब लेगा।
يَـٰٓأَيُّہَا ٱلَّذِينَ ءَامَنُوٓاْ أَطِيعُواْ ٱللَّهَ وَأَطِيعُواْ ٱلرَّسُولَ..... فَإِن تَنَـٰزَعۡتُمۡ فِى شَىۡءٍ۬ فَرُدُّوهُ إِلَى ٱللَّهِ وَٱلرَّسُولِ
ऐ ईमान वालो! इताअत करो अल्लाह की और इताअत करो रसूल की ....फिर अगर किसी चीज़ में इख़्तिलाफ करो तो उसे अल्लाह और रसूल की तरफ़ लौटाओ (अन्निसा-59)
’’ من عمل عملا لیس علیہ امرنا فھو رد ‘‘(مسلم(
जिस ने कोई ऐसा अमल किया जिस पर हमारा हुक्म नहीं तो वो अमल मुस्तरद है
यहां से साबित है कि हर फे़अल की असल आज़ादी (इबाहत) नहीं बल्कि हुक्मे शरई की इताअत और उसकी मुवाफ़िक़त है, वर्ना वो अमल ही मुस्तरद है! कोई भी अमल ख़ुदबख़ुद जायज़ नहीं क़रार पायगा बल्कि शारेअ के ख़िताब से हुक्म मालूम करने के बाद, उसकी पाबंदी की जाएगी। यहीं से आज़ादिये फे़अल के क़ाईदे (Freedom of acts unless clear prohibitions are stated) की तरदीद साबित है। और सहाबा किराम رضی اللہ عنھم का तअम्मुल भी الأصل في الأفعال التقید بالحکم الشرعي (अफ़आल में हुक्मे शरई की पाबंदी की जाएगी) के क़ाईदे पर मबनी था। इस बात की दलील क़ुरआन में कई जगह पर इन अल्फाज़ में मज़कूर है (یسئلونک) (वे आप से पूछते हैं)। अगर अफ़आल की असल आज़ादी होती तो सहाबा किराम का मामूल पूछना ना होता।
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