विलायते बनू बुवैह (320 हि./932 ई. से 447 हि./1055 ई.)

विलायते बनू बुवैह (320 हि./932 ई. से 447 हि./1055 ई.) 

सामनियों की तरह यह भी एक ईरानी ख़ानदान था। इस हुकूमत के संस्‍थापक तीन भाई अली, हसन और अहमद थे, जिन्‍होंने क्रमश : इमादुद-दौला, रुकनुद-दौला और मअज्‍़ज़द-दौला की उपाधि ग्रहण की। बनु बुवैह का सबसे मशहूर हुक्‍मरान अजु़दुद-दौला (366 हि./976 ई. से 372 हि./982 ई.) है। अज़ुदुद-दौला फ़ारस और करमान प्रांत का 28 साल तक वाली (गवर्नर) रहा। उसने वाली की हैसियत से जनकल्‍याण के बहुत से काम किए और सल्‍तनत का बहुत विकास किया। उसने डाक व्‍यवस्‍था इतनी सुचारू कर दी कि शीराज़ से क़ासिद (संदेशवाहक) सात दिन में बग़दाद पहुँच जाता था। हालॉंकि दोनों शहरों के बीच लगभग छ: सौ मील की दूरी है। अरब और किरमान के रेगिस्‍तान उस ज़माने में डाकुओं का अड्डा बन गए थे, लेकिन अज़ुदुद-दौला ने वहॉ ऐसी शान्ति व्‍यवस्‍था की कि क़ाफिले बिना भय के सफ़र करने लगे।

अज़ुदुद-दौला ने बग़दाद का बहुत विकास किया। नहरें खुदवाई, दजला पर पुल बनवाया, शीराज़ में सिंचाई के लिए उसने एक बहुत बडा़ बाँध बनाया, जो 'अमीर बाँध' के नाम से अब तक मौजूद है। उसका एक और बडा़ कारनामा बग़दाद में एक विशाल अस्‍पताल स्‍थापित करना है। जनता के लिए अस्‍पताल खोलने की परम्‍परा हालॉंकि उमवी ख़लीफ़ा वलीद के काल से ही प्रांरभ हो चुकी थी, लेकिन अज़ुदुद-दौला का अस्‍पताल विशेष रूप से उल्‍लेखनीय था। यह अस्‍पताल दजला के किनारे एक विशाल भवन में था। यह इतना बडा़ था कि सारी दुनिया में कोई अस्‍पताल इसका मुक़ाबला नहीं कर सकता था। इसमें 24 चिकित्‍सक नियुक्‍त थे। जर्राह यानी ऑपरेशन करने वाले, कहाल यानी ऑंखों का इलाज करने वाले डॉक्‍टर और मरहम पट्टी करने वाले कर्मचारी इसके अतिरिक्‍त थे। इस अस्‍पताल के खर्च का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि इसके लिए साढे़ सात लाख रुपये सालाना की जागीर दे दी गई थी। यह अस्‍पताल (371 हि./981 ई. से 656 हि./1258 ई.) ढाई सौ साल से अधिक अर्से तक क़ायम रहा।

ज्ञान एवं साहित्‍य – बनु बुवैह के कई हुक्‍मरान और मंत्री ज्ञान एवं साहित्‍य के बडे़ सरपरस्‍त थे। अज़ुदुद-दौला और साहब इब्‍न अब्‍बाद इसके लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। अरबी भाषा का सबसे बडा़ शयर मुतनब्‍बी (915 ई. से 965 ई.) इसी काल में हुआ है। प्रसिद्ध चिकित्‍सक और दार्शनिक बू अली सीना (370 हि./980 ई. से 428 हि./1036 ई.) इसी काल में हुआ हैं। 'राज़ी' के बाद इब्‍न सीना सबसे बडा़ मुसलमान चिकित्‍सक हुआ है। चिकित्‍साशास्‍त्र पर उसने जो किताब लिखी उसका नाम 'शिफ़ा' है और दर्शनशास्‍त्र पर जो सबसे बडी़ किताब लिखी उसका नाम 'क़ानून' है। ये दोनों किताबें कई-कई भागों में हैं और अरबी में हैं। बाद में उसकी किताबों का लातीनी और यूरोप की दूसरी ज़बानों में अनुवाद हुआ और फ्रांस, जर्मनी तथा इटली के स्‍कूलों में कई सौ साल तक उसकी किताबें पढा़ई जाती रहीं। उसने चिकित्‍सा विज्ञान में बहुत विस्‍तार किया। वह बहुत बडा़ दार्शनिक भी था।

उस काल के वैज्ञानिकों में इब्‍न हैसम (354 हि./965 ई. से 430 हि./1039 ई.) का नाम भी उल्‍लेखनीय है। वह बसरा का रहने वाला था और इब्‍न सीना का समकालीन था। उसने जीव-विज्ञान से सम्‍बन्धित कई किताबें लिखीं। यूरोप के अन्‍वेषकों का कहना है कि तस्‍वीर लेने वाला कैमरा जिस सिद्धान्‍त की बुनियाद पर बनाया गया है वह सिद्धान्‍त सबसे पहले इब्‍ने हैसम ने ही पेश किया था। उसकी किताब 'किताबुल-मनाजिर' जिसमें उसने यह सिद्धान्‍त पेश किया था बारहवीं सदी ई. में अरबी में लातीनी ज़बान में अनुवाद की गई और यूरोप के वैज्ञानिकों ने उससे फ़ायदा उठाया। दर्शनशास्‍त्र की प्रसिद्ध किताब 'रसायल इख्‍़वानुस-सफ़ा' भी उसी काल में लिखी गई।               

Share on Google Plus

About Khilafat.Hindi

This is a short description in the author block about the author. You edit it by entering text in the "Biographical Info" field in the user admin panel.
    Blogger Comment
    Facebook Comment

0 comments :

इस्लामी सियासत

इस्लामी सियासत
इस्लामी एक मब्दा (ideology) है जिस से एक निज़ाम फूटता है. सियासत इस्लाम का नागुज़ीर हिस्सा है.

मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.