शरीयत के अहकाम पर अमलपैरा होने मे जल्दी करना

अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता है।

وَ سَارِعُوْۤا اِلٰى مَغْفِرَةٍ مِّنْ رَّبِّكُمْ وَ جَنَّةٍ عَرْضُهَا السَّمٰوٰتُ وَ الْاَرْضُ١ۙ اُعِدَّتْ لِلْمُتَّقِيْنَۙ

दौड़ कर चलो उस राह पर जो तुम्हारे रब की बख़्शिश और उस जन्नत की तरफ़ जाती है जिसकी वुस्अत ज़मीन और आसमान जैसी है और वो अल्लाह से डरने वालों के लिए मुहय्या की गई है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: आले इमरान -133)

एक दूसरे मुक़ाम पर अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता है।

 اِنَّمَا كَانَ قَوْلَ الْمُؤْمِنِيْنَ اِذَا دُعُوْۤا اِلَى اللّٰهِ وَ رَسُوْلِهٖ لِيَحْكُمَ بَيْنَهُمْ اَنْ يَّقُوْلُوْا سَمِعْنَا وَ اَطَعْنَا١ؕ وَ اُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ (۵۱)  وَ مَنْ يُّطِعِ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗ وَ يَخْشَ اللّٰهَ وَ يَتَّقْهِ فَاُولٰٓىِٕكَ هُمُ الْفَآىِٕزُوْنَ۠

ईमान लाने वालों का काम तो ये है के जब अल्लाह और रसूल की तरफ़ बुलाए जाऐं ताके रसूल उनके मुकद्दिमे का फ़ैसला करें तो वो कहें हम ने सुना और इताअ़त की। ऐसे ही लोग फ़लाह पाने वाले हैं और कामयाब वही हैं जो अल्लाह और रसूल की फ़र्मांबरदारी करें और अल्लाह से डरते रहें और इस की नाफ़रमानी से बचें। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: अल नूर- 51,52)

एक दूसरे मक़ाम पर मोमिन मर्द और मोमिन औरत की सिफ़ात को यूँ बयान किया गया है।

وَ مَا كَانَ لِمُؤْمِنٍ وَّ لَا مُؤْمِنَةٍ اِذَا قَضَى اللّٰهُ وَ رَسُوْلُهٗۤ اَمْرًا اَنْ يَّكُوْنَ لَهُمُ الْخِيَرَةُ مِنْ اَمْرِهِمْ١ؕ وَ مَنْ يَّعْصِ اللّٰهَ وَ رَسُوْلَهٗ فَقَدْ ضَلَّ ضَلٰلًا مُّبِيْنًاؕ

किसी मोमिन मर्द और किसी मोमिन औरत को ये हक़ नहीं है के जब अल्लाह और उसके रसूल किसी मुआमला का फ़ैसला कर दें तो फिर उसे अपने इस मुआमले में ख़ुद फ़ैसला करने का इख़्तियार हासिल रहे और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल की नाफ़रमानी करेगा तो वो सरीह गुमराही में पड़ गया। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: अहज़ाब- 36)

क़ुरआन में अल्लाह سبحانه وتعالیٰ मज़ीद फ़रमाता है।

فَلَا وَ رَبِّكَ لَا يُؤْمِنُوْنَ حَتّٰى يُحَكِّمُوْكَ فِيْمَا شَجَرَ بَيْنَهُمْ ثُمَّ لَا يَجِدُوْا فِيْۤ اَنْفُسِهِمْ حَرَجًا مِّمَّا قَضَيْتَ وَ يُسَلِّمُوْا تَسْلِيْمًا

हरगिज़ नहीं, ऐ मुहम्मद! तुम्हारे रब की क़सम ये कभी मोमिन नहीं हो सकते जब तक के अपने आपसी इख़्तिलाफ़ात में तुम को ये फ़ैसला करने वाला ना मान लें, फिर जो कुछ तुम फ़ैसला करो उस पर अपने दिलों में कोई तंगी ना महसूस करें बल्कि सरे तस्लीम ख़म कर दें। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: अन्निसा-65)

يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِيْكُمْ نَارًا وَّ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلٰٓىِٕكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا يَعْصُوْنَ اللّٰهَ مَاۤ اَمَرَهُمْ وَ يَفْعَلُوْنَ مَا يُؤْمَرُوْنَ
ऐ लोगो जो ईमान लाए! बचाओ अपने को और अपने एहल-ओ-अ़याल को उस आग से जिसका ईंधन इंसान और पत्थर होंगे जिस पर निहायत तुंद ख़ू और सख़्त गीर फ़रिश्ते मुक़र्रर होंगे जो कभी अल्लाह के हुक्म की नाफ़रमानी नहीं करते और जो हुक्म भी उन्हें दिया जाता है उसे बजा लाते हैं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: तहरीम-06)

فَإِمَّا يَأۡتِيَنَّڪُم مِّنِّى هُدً۬ى فَمَنِ ٱتَّبَعَ هُدَاىَ فَلَا يَضِلُّ وَلَا يَشۡقَىٰ (۱۲۳ ١٢٣ ) وَمَنۡ أَعۡرَضَ عَن ذِڪۡرِى فَإِنَّ لَهُ ۥ مَعِيشَةً۬ ضَنكً۬ا وَنَحۡشُرُهُ ۥ يَوۡمَ ٱلۡقِيَـٰمَةِ أَعۡمَىٰ (۱۲۴ ١٢٤ ) قَالَ رَبِّ لِمَ حَشَرۡتَنِىٓ أَعۡمَىٰ وَقَدۡ كُنتُ بَصِيرً۬ا (۱۲۵ ١٢٥ ) قَالَ كَذَٲلِكَ أَتَتۡكَ ءَايَـٰتُنَا فَنَسِيتَہَاۖ وَكَذَٲلِكَ ٱلۡيَوۡمَ تُنسَىٰ

अगर मेरी तरफ़ से तुम्हें कोई हिदायत पहुंचे तो जो कोई मेरी इस हिदायत की पैरवी करेगा वो ना भटकेगा, और ना ही बदबख़्ती में मुब्तिला होगा और जो मेरे ज़िक्र (यानी दर्से नसीहत) से मुंह माड़ेगा इसके लिए दुनिया की ज़िंदगी तंग होगी और क़ियामत के रोज़ उसे हम अंधा उठाएंगे। वो कहेगा ऐ मेरे रब! दुनिया में तो मैं आँखों वाला था, यहाँ मुझे अंधा क्यों उठाया? अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाएगाः जब हमारी आयात तुम्हारे पास आई थीं तो तुमने इनको भुला दिया था। इसी तरह आज तुमको भी भुला दिया जा रहा है।  (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः ताहा- 123,126)

मुस्लिम शरीफ़़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया:

((بَادِرُوا بِالأَعْمَالِ فِتَنًا كَقِطَعِ اللَّيْلِ الْمُظْلِمِ يُصْبِحُ الرَّجُلُ مُؤْمِنًا وَيُمْسِى كَافِرًا أَوْ يُمْسِى مُؤْمِنًا وَيُصْبِحُ كَافِرًا يَبِيعُ دِينَهُ بِعَرَضٍ مِنَ الدُّنْيَا))
صحیح مسلم، ترمذی، مسند احمد

नेकी के कामों को करने में जल्दी करो, उन फ़ित्नों से पहले जो सख़्त तारीक रात के हिस्सों के मानिंद होंगे, आदमी ईमान की हालत में सुबह करेगा तो शाम कुफ्र की हालत में होगी दुनिया की चीज़ों के लिए वो अपने दीन का सौदा करेगा।

जो लोग मग़फिरते इलाही के हुसूल के लिए सरगरदाँ हैं और जन्नत की तलब और नेकी के आमाल करने में सबक़त करते हैं, ऐसे लोग नबी आख़िरुज़्ज़मा के ज़माने में भी पाऐ जाते रहे हैं और बाद के दौर में भी मिलते हैं, उम्मत में ऐसे लोग हर ज़माने में पैदा होते रहे हैं जो अपने रब की आवाज़ पर लब्बैक कहते हैं और अपने रब की रज़ा और ख़ुशनूदी के लिए अपनी जानों तक का सौदा कर लेते हैं।

चुनांचे सही बुख़ारी शरीफ़़ और सही मुस्लिम शरीफ़़ में हज़रत जाबिर (رضي الله عنه) की एक हदीस है, वो फ़रमाते हैं:

((قال رجل للنبی ا یوم أحد: إن قتلت فأین أنا؟ قال: في الجنۃ فألقی تمرات فيیدہ ثم قاتل حتی قتل))

उहद के दिन एक शख़्स ने खजूरें खाते हुए रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) से दरयाफ़्त किया के अगर मैं क़त्ल कर दिया जाऊं तो आप मुझे कहाँ देखते हैं? आपने फ़रमाया जन्नत में, ये सुन कर उस शख़्स ने अपनी खजूरें फेंक दीं और शरीके जिहाद हो कर जामे शहादत नोश कर गया।

सही मुस्लिम में हज़रत अनस (رضي الله عنه) से हदीस रिवायत हैः

)(فانطلق رسول اللہ ا و اصحابہ حتی سبقوا لامشرکین الیٰ بدر و جاء المشرکون ،فقال رسول اللہ ا:’’قوموا الی جنۃ عرضھا السماوات والأرض ،قال یقول عمیر بن الحمام الأنصاری :’’یا رسول اللہا!جنۃ عرضھا لسماوات و الأرض قال :نعم ،قال بخ بخ ،فقال رسول اللہ ا :ما یحملک علی قولبخ بخ ؟،قال لا واللہ یا رسول للہ الا رجاء ۃ أن أکون من أھلہا قال فانک من أھلھا ،فأخرج تمرات من قرنہ ، فجعل اأکل منہن ،ثم قال :لئن أنا حییت حتی آکل تمراتي ھذہ انھا لحیاۃ طویلۃ ،قال :فرمی بما کان معہ من التمر ،ثم قاتلھم حتی قتل)(
रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) और सहाबा किराम जंगे बदर के लिए निकले और मुक़ामे बदर में मुशरिकीन से पहले पहूंच गए फिर मुशरिकीने मक्का पहुंचे, रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया “उस जन्नत के लिए तैय्यार हो जाओ जिसकी वुसअ़त ज़मीन-ओ-आसमान जैसी है।“ हज़रत उ़मैर बिन हमाम अल अंसारी फ़रमाते है “या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! क्या वाक़ई एैसी जन्नत है जिसकी वुसअ़त ज़मीन-ओ-आसमान के बराबर है? आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया हाँ, हज़रत उ़मैर ने ये सुन कर कहा “वाह! क्या बात है। आपने दरयाफ़्त किया कि आख़िर तुम ने ऐसा क्यों कहा? तो उन्होंने जवाब दिया कि “ऐ अल्लाह के रसूल ख़ुदा की क़सम एैसी कोई बात नहीं बल्कि मैं सिर्फ़ ये चाहता हूँ के मैं भी उन लोगों में से हूँ जिन के लिए ये तैय्यार की गई है। आप (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायारू तुम उन लोगों में से हो। इसके बाद हज़रत उ़मैर ने अपनी खजूर निकालीं और खाने लगे। फिर उन्होंने कहा कि अगर मैं इसी तरह जितनी देर खजूरें खाता रहा तो इतनी देर तक ज़िंदा रहूँगा और मेरी जिंदगी उतनी ही लंबी होगी। रावी का कहना है के उन्होंने अपनी खजूरें फेंक दीं और जंग में शरीक हो कर जामे शहादत नोश फ़रमाया।

हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मरवी एक मुत्तफ़िक़ अ़लैह हदीस हैः

((غاب عمي أ نس بن نضر عن قتال بدر ، فقال :’’یا رسول اللہا! عبت عن أول قتال المشرکین ،لئن اللہ أشھدني قتال المشرکین لیریناللہ ما أصنع ’’فلما کان یوم أحد ،وانکشف المسلمون قال :’’اللھم اني أعتذر الیک مما صنع ھؤلاء یعنی الصحابۃ ،وأبرأالیک مما صنع ہؤلاء یعنی المشرکین‘‘،ثم تقدم فا ستقبلہ سعدبن معاذ ، فقال :’’یا سعد بن معاذ! الجنۃ ورب النضر اني أجد ریحھا من دون أحد قال سعد فما استطعت یا رسول اللہا ما صمع ،قال منس فوجدنا بہ بضعا ثمانین ضربۃ بالسیف أو طعنۃ برمح أو رمےۃ بسھم و وجدناہ قد قتل ،و قد مثل بہ الشرکین فما عرفہ أحد الا أختہ ببنانہ ‘‘قال أنس کنا نری أو نظن أن ھذہ الآےۃ نزلت فیہ و فی أشباھہ (من المؤمنین رجال صدقوا ما عھدوا اللہ علیہ)الیٰ آخر الآےۃ))

हज़रत अनस फ़रमाते हैं के मेरे चचा हज़रत अनस बिन नज़र (رضي الله عنه) जंगे बदर में शरीक ना हो सके, तो उन्होंने कहा “या रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)! मैं मुशरिकीन के साथ हुई पहली जंग में हाजि़र ना हो सका अगर अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने बाद में किसी जंग में शरीक होने का मौक़ा दिया तो मैं दिखाउंगा कि मैं क्या कारनामे अंजाम देता हूँ।“ चुनांचे उहद के दिन मुसलमानों को हज़ीमत का सामना करना पड़ा तो अनस बिन नज़र (رضي الله عنه) ने कहा “ऐ अल्लाह! मैं इन (सहाबा) की कारकर्दगी से तेरी माफ़ी तलब करता हूँ और उन (मुशरिकीन) की कारस्तानियों से बराअत का इज़्हार करता हूँ।“ फिर हज़रत साद बिन मआज़ से उनकी मुलाक़ात हुई तो कहा “ऐ साद! मैं इस उहद की वादी में जन्नत की ख़ुशबू मेहसूस कर रहा हूँ।“ साद ने फ़रमाया “ऐ अल्लाह के रसूल मैं वो नहीं कर सका जो उन्होंने कर दिखाया।“ अनस कहते हैं के हमने उनके जिस्म पर अस्सी (80) से ज़्यादा ज़ख़्म देखे या तो वो तलवार के थे या नेजों के या तीरों के। इनको शहीद कर दिया गया था और मुशरिकीन ने उन का मुस्ला किया हुआ था। इनको हम में से कोई नहीं पहचान सका सिवाए उनकी बहन के जिन्होंने उनकी उंगलियों के ज़रीये उनकी शनाख़्त की।“ इसके बाद हज़रत अनस फ़रमाते हैं के उन्हीं लोगों या उन जैसे लोगों के ताल्लुक़ से क़ुरआन की ये आयत नाज़िल हुई।

مِنَ الْمُؤْمِنِيْنَ رِجَالٌ صَدَقُوْا مَا عَاهَدُوا اللّٰهَ عَلَيْهِ١ۚ
एहले ईमान ऐसे भी हैं जिन्होंने अल्लाह से किए अपने वादों को पूरा कर दिखाया। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीम: अहज़ाब -23)

))عن أبي سروعۃ قال :’’صلیت وراء النبي صلی اللہ علیہ وسلم بالمدینۃ العصر فسلم، ثم قام مسرعا ، فتخطی رقاب الناس الیٰ حجر نساۂ ، ففڑع الناس من سرعہ ، جخرج علیہم ، فرأی أنھم قد عجبوا من سرعہ ، فقال :’’ذکرت شےئا من تبر عندنا ، فکرھت أن یحسبني ،فأمرت بقسمتہ ، ‘‘وفي رواےۃ لہ:’’کنت خلفت في البیت تبرا من الصدقۃ ، فکرھتأن أبیتہ ،((

अबू सरूआ से रिवायत की है के वो फ़रमाते हैं के मैंने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के पीछे अ़स्र की नमाज़ अदा की, फिर आप (صلى الله عليه وسلم) ने सलाम फेरा और तेज़ी से खड़े हुए और लोगों की गरदनों को फलांगते हुए अपनी बीवी के कमरे की तरफ़ गए, लोगों को इस पर बड़ा ताज्जुब हुआ, फिर आप (صلى الله عليه وسلم) आए और लोगों के हैरत और बेचेनी को देख कर फ़रमाया “मुझे याद आया के मेरे पास कुछ सोना पड़ा हुआ है तो मुझे ये नागवार गुज़रा के वो मुझे रोक ले लिहाज़ा मैंने उसको तक़सीम करने का हुक्म दे दिया।“ अबू सरूआ की एक दूसरी रिवायत में है के आप ने फ़रमाया के “मैं अपने पीछे सद्क़े का कुछ सोना छोड़ आया था, तो मुझे नापसंद हुआ के मैं इसके साथ रात गुज़ारूं।“

ये वाक़िया मुसलमानों की रहनुमाई करता है के अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त के वाजिबात की अदायगी में किस क़दर सुरअ़त से काम लेना चाहिए।

))عن البراء قال:’’لما قدم رسول اللہ ا المدینۃ صلی نحو بیت المقدس ستۃ عشر اأو سبعۃ عشر شہرا و کان یحب أن یوجہ الی الکعبۃ فأنزل اللہ تعالیٰ (قد نری تقلب وجھک في السماء فلنولینک قبلۃ ترضاھا)فوجہ نحو الکعبۃ و شلی معہ رجل العصر ثم خرج فمر علی قوم من الأنصار فقال ھو یشہد أنہ شلی مع النبي ا وأنہ قد وجہ الی ٰ الکعبۃ فانحرفوا وہم رکوع في صلاۃ العصر((

हज़रत इमाम बुख़ारी رحمت اللہ علیہ ने हज़रत बरा (رضي الله عنه) से रिवायत नक़ल की है हज़रत बरा (رضي الله عنه) फ़रमाते हैं के जब रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) मदीना तशरीफ़़ लाए तो बैतुल मुक़द्दस की जानिब रुख़ करके 16 या 17 माह तक नमाज़ अदा की और आप (صلى الله عليه وسلم) की शदीद ख़्वाहिश थी के क़िब्ले का रुख़ काअ़बे की जानिब कर दिया जाये। चुनांचे अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने ये आयत नाज़िल की

قَدْ نَرٰى تَقَلُّبَ وَجْهِكَ فِي السَّمَآءِ١ۚ فَلَنُوَلِّيَنَّكَ قِبْلَةً تَرْضٰىهَا١۪

चुनांचे और क़िब्ला ख़ानाऐ काबा की जानिब मुंतक़िल कर दिया गया।

एक शख़्स ने आप के साथ अ़स्र की नमाज़ अदा की। फिर वो बाहर निकला तो उसका गुज़र अंसार की एक जमाअ़त के पास से हुआ। उसने गवाही देते हुए कहा के उस ने रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के साथ ख़ानाऐ काबा की तरफ रूख़ कर के नमाज़ पढ़ी है चुनांचे अंसार की जमाअ़त ने रुकू की हालत ही में अपना रुख़ मोड़ लिया ओर ये अ़स्र की नमाज़ का वक़्त था।

عن ابن أبي أوفیؓ یقول:’’أصبتنا مجاعۃ لیالي خیبر فلما کان یوم خیبر وقعنا في الحمر الأھلےۃ فانتحرنا ھا فلما غلت القدور نادی منادي رسول اللہ ا أکفؤا القدور فلا تطعموا من لحوم الحمر شےئا قال عبد اللہ فقلنا انما نہی النبي ا لأنھا لم تخمس قال و قال آخرون حرمھا البتۃ و سألت سعید بن جبیر فقال حرمھا البتۃ

हज़रत इब्ने अबी औफ़ा (رضي الله عنه) फ़रमाते हैं के जंगे ख़ैबर के वक़्त हम शदीद भूख़ की हालत में थे, जब ख़ैबर फ़तह हो गया और माले ग़नीमत में गधे भी आए तो हम ने इनको ज़िबह कर दिया जब हांडियों में गोश्त उबल रहा था तो रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के मुनादी ने एैलान किया के हांडियों का गोश्त उलट दो और गोश्त बिल्कुल मत खाओ। (एक शख़्स) अ़ब्दुल्लाह फ़रमाते हैं के हम ने कहा रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने इसलिए मना फ़रमाया है क्योंकि इन का ख़ुम्स[1] नहीं निकाला गया है, और बाअ़ज़ का कहना था के नहीं उनको मुकम्मल हराम क़रार दे दिया गया है हम ने सईद बिन ज़ुबैर (رضي الله عنه) से दरयाफ़्त किया तो उन्होंने कहा के इसको मुकम्मल हराम क़रार दे दिया गया है।

عن أنس بن مالکؓ قال :’’کنت أسقي أبا طلحۃ الأنصاري و أبا عبیدۃ بن الجراح ب أبي بن کعب شرابا من فضیخ و ہو تمر فجاء ہم آت فقال ان الزمر قد رحمت فقال أبو طلحۃ یا أنس قم الی ہذہ الجراد فاکسرہا قال أنس فقمت الی مہراس لنا فضربتہا بٖسفلہ حتی انکسرت

इमाम बुख़ारी हज़रत अनस बिन मालिक (رضي الله عنه) से रिवायत करते हैं के उन्होंने फ़रमाया के “मैं अबू तलहा अंसारी और अबू उ़बैदा बिन अल जर्राह को और उबई इब्ने कअ़ब को फ़दीख़ (खजूर की एक किस्म) की बनी हुई शराब पिला रहा था तो एक शख़्स आया और कहने लगा “शराब को हराम क़रार दे दिया गया है।“ चुनांचे अबू तलहा (رضي الله عنه) ने कहा “अनस इन सुराहियों को तोड़ दो”, लिहाज़ा मैंने अपनी लाठी उठाई और उनके निचले हिस्से से उन पर मारना शुरू किया और उन तमाम को तोड़ दिया।

عن عائشۃؓ قالت:’’وبلغنا أنہ لما أنزل اللہ تعالیٰ أن یردوا الی المشرکین ما أنفقوا علی من ہاجر من أزواجہم و حکم علی المسلمین أن لا یمسکوا بعصم الکوافر أن عمرؓ طلق امرأتین

उम्मुल मोमिनीन हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا की एक रिवायत इमाम बुख़ारी رحمت اللہ علیہ ने नक़ल की है के आप (رضي الله عنه) फ़रमाती हैं कि “जब हम को ये ख़बर पहुंची के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ की जानिब से ये नाज़िल कर दिया गया है के मुसलमानों को ये हुक्म हुआ है के वो काफ़िर औरतों को अपने निकाह में ना रखें, तो हज़रत उ़मर (رضي الله عنه) ने दो औरतों को तलाक़ दे दी।

وروی البخاري عن عائشۃ رضی اللہ عنھا قالت : یرحم اللہ نساء المھاجرات الأول لما أنزل اللہ (ولیضربن بخمرھن علی جیوبھن)سققن مروطھن فاختمرن بھا

बुख़ारी رحمت اللہ علیہ की रिवायत है, जिस में हज़रत आइशा सिद्दीक़ा (رضي الله عنه)ا फ़रमाती हैं कि “अल्लाह سبحانه وتعالیٰ मुहाजिरीन औरतों पर रहम फ़रमाए जब अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने ये आयत नाज़िल फ़रमाई :

وَ لْيَضْرِبْنَ بِخُمُرِهِنَّ عَلٰى جُيُوْبِهِنَّ١۪
और ओढ़े रखें अपनी ओढ़नियों को अपने सीनों पर (तर्जुमा मआनीऐ क़ुरआन: अल नूर:31)
 तो उन्होंने अपनी चादरों को फाड़ कर अपना ढुपट्टा और ओढ़नी बना लिया।

))أخرج أبو داؤو عن صفےۃ بنت شیبۃ عن عائشۃؓ أنھا دکرت نساء الأنصار فأثنت علیھن و قالت :’’ لما نزلت سورۃ النور عمدن الی حجور فسققنہن فاختخدنہ خمرا((

सुनन अबू दाऊद में हज़रत सफ़िया बिन्ते शैबा (رضي الله عنه)ا से हज़रत आइशा (رضي الله عنه)ا की रिवायत नक़ल की है के हज़रत आइशा (رضي الله عنه)ا के सामने अंसार की औरतों का ज़िक्र किया गया तो आपने उनकी तारीफ़़ की और कहा “जब सूरह अल-नूर नाज़िल हुई तो अंसार की औरतें अपने घरों को गईं और अपनी चादरों को फाड़ कर पर्दा बना लिया।

))قال ابن اسحاق:...و قدم علی رسول اللہ ا الأشعث بن قیس في وفد کندۃ ۔فحدٹني الزہري أنہ قدم في ثمانین راکبا من کندۃ ، فدخلوگ علی رسول اللہ ا مسجدہ ، قد رجلوا جممہم(جمع جمۃ وہي شعر الرأس الکثیف)و تکحلوا ،علیہم جبب الحبرۃ قد کففوہا بالحریر ، جلما دخلوا علی رسول اللہ ا قال لہم :’ألم تسلموا‘قالو :بلی ۔قال جما بال ہذٓ الحریر في أعناقلم ؟ قال فشقوہ منہا فألقوہ((

साहिबे अल मग़ाज़ी हज़रत इब्ने इस्हाक़ कहते हैं के किंदाह के वफ़्द के साथ अशअ़स बिन क़ैस, मुहम्मद (صلى الله عليه وسلم) के पास आए, फिर हज़रत इस्हाक़ कहते हैं के मुझ से ज़ुहरी ने बयान किया के किंदाह के इस वफ़्द में अस्सी (80) लोग थे, ये रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के पास आये। आप मस्जिद में तशरीफ़़ फ़रमा थे। उन लोगो ने अपने घने बालों में कंघी की हुई थी और सुरमा लगा रखा था और यमनी लिबास पहन रखा था और काँधों पर रेशम की चादर थी चुनांचे जब आप (صلى الله عليه وسلم) के सामने आए तो आप ने फ़रमाया “क्या तुम ने इस्लाम क़ुबूल नहीं किया? उन्होंने जवाब दिया “क्यों नहीं अल्लाह के रसूल!” फिर आपने इरशाद फ़रमाया “आख़िर क्या बात है के तुम्हारे शानों पर ये रेशम क्यों पड़े हैं? ये सुनना था के उन्होंने फ़ौरन ही रेशम को फाड़ डाला और उतार कर फेंक दिया।

इब्ने जरीर हज़रत अबी बुरदा से रिवायत करते हैं जो उन्होंने अपने वालिद से और उनके वालिद ने अपने वालिद से नक़ल किया है के “हम अपने मैख़ाने में बैठे हुए थे (वो रेत का एक टीला था) हमारी तादाद तकरीबन 3 या 4 थी और हमारे पास शराब का एक बड़ा बर्तन था और हम शराबनोशी कर रहे थे, उस वक़्त शराब हलाल थी फिर मैं रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) के पास गया और इस वक़्त शराब की हुर्मत नाज़िल हो चुकी थी। यानि (یا أیہاا لذین آمنوا انما الخمر و المیسر...فہل أنتم منتہون)फिर मैं अपने साथियों के पास गया और उन पर इन आयात की तिलावत की इस हाल में के उनके हाथों में अभी जाम थे और उन्होंने शराब पी ली थी और कुछ बर्तन में बची हुई थी और उनके जाम उनके होंटों से लगे हुए थे जैसे सेंगी लगाने वाला करता है, आयात सुनने के बाद उन्होंने अपने बर्तनों की शराब बहा दी और कहा “हमारे परवरदिगार ने हम को रोक दिया है।“

ग़सील अलमलाइका हज़रत हुंज़ला बिन अबी आमिर (رضي الله عنه) (उनकी नई नई शादी हुई थी) ने जब जंगे उहद में शिरकत की निदा (आवाज़) सुनी तो लब्बैक कहते हुए तेज़ी से मैदान ए कारज़ार की तरफ़ रवाना हुए और जामे शहादत नोश किया। इब्ने इस्हाक़ कहते हैं के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमाया के “तुम्हारे साथी को फ़रिश्ते ग़ुस्ल दे रहे हैं, ज़रा इसके एहले ख़ाना से दरयाफ़्त करो के आख़िर क्या बात है? चुनांचे उनकी बीवी से पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया के जब उन्होंने आवाज़ सुनी थी उस वक़्त वो जुंबी थे (उन्हें ग़ुस्ल की हाजत थी) और इसी हालत में निकल गए थे। रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) फ़रमाते हैं “इसीलिए फ़रिश्ते उनको अपने हाथों से ग़ुस्ल दे रहे हैं।

इमाम अहमद, राफ़े बिन ख़दीजा से रिवायत करते हैं के राफ़े ने कहा कि “हम एहदे रिसालत में काश्तकारी किया करते थे, और इसको चैथाई या तिहाई या मुतय्यन ग़ल्ले के बदले बेच दिया करते थे। एक दिन हमारे एक चचा हमारे पास आए और कहने लगे के रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) ने उस चीज़ से हमें मना फ़रमा दिया है जो के हमारे लिए मुफ़ीद थी, अल्लाह और रसूल की इताअ़त इस से ज़्यादा नफ़ा बख़्श है। हम को मना कर दिया गया है कि हम खेती करें और इसको सल्स (1/3), रुबा (1/4) या मुतय्यन ग़ल्ले के बदले किराए पर दें और ज़मीन के मालिक ने ये हुक्म दिया है के या तो हम ख़ुद खेती करें या किसी को दे दें, किराए पर देने को ना पसंद किया है।




[1] माले ग़नीमत का पाँचवा हिस्सा जो ग़ुरबा और लावारिसों के लिये वक़्फ किया जाये
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मदनी रियासत और सीरते पाक

मदनी रियासत और सीरते पाक
अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) की मदीने की जानिब हिजरत का मक़सद पहली इस्लामी रियासत का क़याम था जिसके तहत इस्लाम का जामे और हमागीर निफाज़ मुमकिन हो सका.

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास

इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी का इतिहास
इस्लाम एक मुकम्म जीवन व्यवस्था है जो ज़िंदगी के सम्पूर्ण क्षेत्र को अपने अंदर समाये हुए है. इस्लामी रियासत का 1350 साल का इतिहास इस बात का साक्षी है. इस्लामी रियासत की गैर-मौजूदगी मे भी मुसलमान अपना सब कुछ क़ुर्बान करके भी इस्लामी तहज़ीब के मामले मे समझौता नही करना चाहते. यह इस्लामी जीवन व्यवस्था की कामयाबी की खुली हुई निशानी है.