बैतुल माल

फिक़रा या इस्तिलाह बैतुल माल दरअसल एक अतिरिक्त मुरक्कब (mixer) है जिसका इतलाक़ (apply) इस मुक़ाम के लिए होता है जहां रियासत की तमाम महसूलात (taxes) जमा होकर रखी जाती हैं और जहां से उनको ख़र्च किया जाता है। इससे मुराद वो इदारा होता है जो मुस्तहिक़ मुसलमानों से माल (funds) वसूल करके उसके हक़दार मुसलमानों पर ख़र्च करता है।

जैसा कि पिछले पृष्टों में गुज़रा कि हमने ये तबन्नी (adoption) की है कि वालियाँ को विलायते ख़ास ही दी जाये, यानी फ़ौज, क़ज़ा (अदालत) और फंड के सिवा दूसरे अल्फाज़ों  में तमाम फौज के लिए एक केन्द्रीय विभाग (अमीरे जिहाद) हो, तमाम क़िस्म की अदलिया के लिए एक केन्द्रीय विभाग (क़ज़ा) हो और इसी तरह तमाम मालीयाती मुआमलात के लिए भी एक केन्द्रीय इदारा (बैतुल माल) हो। ये इदारा यानी बैतुल माल रियासत के तमाम दूसरे इदारों से अलग एक स्थाई विभाग हो जिस पर ख़लीफ़ा रियासत के दूसरे विभागो की तरह निगरां हो।

इस बात के दलायल निहायत कसरत से मिलते हैं कि बैतुल माल सीधे तौर पर हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم की निगरानी में था, और फिर आप  صلى الله عليه وسلم के ख़ुलफ़ाए राशिदीन या उनकी तरफ से मुक़र्रर किए हुए नुमाइंदे इसके सीधे तौर पर निगरां रहे। चुनांचे आप  صلى الله عليه وسلم  ने ख़ज़ानची भी रखे थे और ख़ुद भी कई दफा माल जमा किया करते थे इसी तरह आप  صلى الله عليه وسلم फंड ख़ुद वसूल फ़रमाते, ख़ुद उसकी तक़सीम करते और ख़ुद ही उसको मुनासिब जगह रखा करते जबकि कई दफा इन मुआमलात की ज़िम्मेदारी किसी को सौंप देते थे। आप के बाद ख़ुलफ़ाए राशिदीन का भी यही तरीक़ा रहा, ये हज़रात या तो बज़ाते ख़ुद बैतुल माल के मुआमलात का प्रबन्ध करते या उनकी तरफ से नियुक्त नुमाइंदे इसके निगरां होते थे।

हुज़ूरे अकरम صلى الله عليه وسلم या तो अम्वाल को मस्जिद में रखते थे, या फिर अपनी बीवीयों में से किसी के हुजरे में, चुनांचे बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अनस رضي الله عنه से रिवायत नक़ल है कि जब बहरीन से अम्वाल (funds) आए तो आँहज़रत  صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:

((انثروہ فی المسجد۔۔۔))
इसको मस्जिद में फैला दो

और अम्वाल को ज़ोजात  (बीवीयों) के हुजरों में रखने के बारे में भी बुख़ारी में उक़बा से नक़ल है, वो कहते हैं:

(صلیت وراء النبی ا بالمدینۃ العصر ،فسلم ثم قام مسرعاً فتخطی رقاب الناس إلی بعض حجر نساۂ ففزع الناس من سرعتہ،فخرج علیھم فرأی أنھم عجبوا من سرعتہ فقال:ذکرت شئیاً من تبر عندنا فکرھت أن یحبسنی فأمرت بقسمتہ۔)

मैंने हुज़ूरे अकरम صلى الله عليه وسلم की इक़्तिदा में अस्र की नमाज़ मदीना में पढ़ी, नमाज़ के फ़ौरन बाद आप ने लोगों को सलाम किया और निहायत तेज़ी से चल पड़े। लोग आप की इस फुर्ती से चिंता में थे, लिहाज़ा वो भी आप के पीछे आप की बीवीयों में से एक के कमरे की तरफ चले। हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم हुजरे से बाहर आए तो देखा कि लोग आप  صلى الله عليه وسلم की इस तेज़ी से फ़िक्रमंद हैं तो आप ने फ़रमाया: मुझे ख़्याल हुआ कि हमारे पास कुछ सोना पड़ा है, और मुझे ये नागवार हुआ कि वो रात भर हमारे पास पड़ा रहे लिहाज़ा मैंने उसे तक़सीम करने का हुक्म दे दिया है।

हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم के वक़्त में मख़ज़न (Store room) था जिसके बारे मुस्लिम शरीफ़ की हज़रत उमर इब्ने ख़त्ताब رضي الله عنه से रिवायत में है कि मैंने हुज़ूरे अकरम صلى الله عليه وسلم के घर पहुंच कर मालूम किया कि आप कहाँ हैं, बताया गया कि वो मख़ज़न में हैं, मैं वहाँ दाख़िल हुआ और देखा कि वहाँ सिर्फ़ एक साअ (a small cubic measure) की मिक़दार में जो थी, कुछ पेड के पत्ते थे और एक चमड़े की थैली लटकी हुई थी। हज़रत उमर कहते हैं कि ये ख़स्ताहाली देख कर मेरी आँखें नम हो गईं और हुज़ूरे अकरम صلى الله عليه وسلم ने पूछा कि ऐ इब्ने ख़त्ताब क्यों रोते हो? मैंने कहा, ए अल्लाह के नबी क्यों ना रोऊँ? इस चटाई के निशान आप की पीठ पर छप गए हैं और ये मख़ज़न मैं ख़ाली देख रहा हूँ।

ख़ुलफ़ाए राशिदीन के दौर में अम्वाल के रखने की जगह को बैतुल माल कहा जाने लगा, तबक़ात इब्ने साद में सहल इब्ने अबी हसमा वग़ैरा से नक़ल है कि हज़रत अबुबक्र رضي الله عنه का बैतुल माल ‘अल सन्ह’ में स्थित था और इस पर कोई पहरेदार नहीं था, उनसे कहा गया कि आप वहाँ कोई पहरेदार मुक़र्रर कर दें तो हज़रत अबुबक्र رضي الله عنه ने फ़रमाया कि उस पर ताला लगा हुआ है। उनका क़ायदा ये था कि वो माल को जब तक ख़त्म ना हो जाता तक़सीम कर दिया करते थे। फिर जब आप मदीना मुंतक़िल (transfer) हुए तो बैतुल माल अपने ही घर में कर लिया और हिनाद ने अलज़हद में हज़रत अनस رضي الله عنه  से रिवायत नक़ल की है जिस की सनद (प्रमाण) सही है, वो कहते हैं कि एक शख़्स हज़रत उमर رضي الله عنه के पास हाज़िर हुआ और कहा कि ए अमीरुल मोमिनींन मुझे कुछ इनायत कीजिए मैं जिहाद पर जाना चाहता हूँ, हज़रत उमर ने उससे कहा कि वो ख़ुद अपने हाथ से उठा ले, चुनांचे वो शख़्स बैतुल माल में हुआ और जो चाहा ले लिया। इमाम शाफ़ई رحمت اللہ علیہने अपनी तसनीफ़ अल उम्म में अब्दुल्लाह इब्ने वदीया से रिवायत नक़ल की है जिस अल्लामा इब्ने हजर رحمت اللہ علیہ ने सही कहा है कि सालिम जो हुज़ैफ़ा के ग़ुलाम थे, फिर वो सलमा बिंत येआर नामी एक ख़ातून के ग़ुलाम थे जिन्होंने दौरे जाहिलियत में उन्हें आज़ाद करके छोड़ दिया था। जब वो जंगे यमामह में शहीद हुए तो उनकी मीरास हज़रत उमर के पास लाई गई, हज़रत उमर ने वदीया इब्ने खिज़ाम को तलब किया और कहा कि ये तुम्हारे ग़ुलाम का तर्का (heritage) है और तुम लोग इसके हक़दार, उन्होंने कहा कि ऐ अमीरुल मोमिनींन अल्लाह (سبحانه وتعال) ने हमें काफ़ी दिया है और हमारी बीवी ने उन्हें आज़ाद करके छोड़ दिया दिया था चुनांचे हम नहीं चाहते कि इस माल पर हम दावा करें या उसको भुगतें। फिर हज़रत उमर ने उसको बैतुल माल में शामिल कर लिया।

बैहक़ी और दारमी ने नक़ल किया है और इस रिवायत को अल्लामा इब्ने हज़म رحمت اللہ علیہ ने सही कहा है सुफ़ियान इब्ने अब्दुल्लाह इब्ने रबीया सक़फ़ी رضي الله عنه को चमड़े की एक थैली मिली जिसे लेकर वो हज़रत उमर رضي الله عنه के पास आए, हज़रत उमर ने उनसे कहा कि एक साल तक तुम लोगों से उसकी शनाख़्त कराओ अगर शनाख़्त हो जाये तो ठीक है वर्ना ये तुम्हारी हुई। उन्होंने ऐसा ही किया लेकिन उसकी शनाख़्त नहीं हो पाई, फिर अगले साल उन्होंने हज़रत उमर को उसकी याद दिलाई तो हज़रत उमर ने कहा कि ये तुम्हारी हुई, हमें अल्लाह के रसूल ने ऐसा ही बताया है। उन्होंने कहा कि मुझे उसकी ज़रूरत नहीं है, फिर हज़रत उमर ने उसे बैतुल माल में दाख़िल कर लिया। इन अब्दुल बर رحمت اللہ علیہ अपनी तसनीफ़ अल इस्तिज़कार में हज़रत अनस इब्ने सीरीन से रिवायत करते हैं कि हज़रत अली رضي الله عنه तमाम अम्वाल को तक़सीम कर दिया करते थे यहां तक कि बैतुल माल साफ़ हो जाता, फिर वो इस पर पानी का छिड़काओ करते और इस में बैठा करते थे।

ये रिवायात तो बैतुल माल के एक ख़ास जगह या मुक़ाम के एतबार से हुईं, लेकिन बैतुल माल का इतलाक़ (Apply) इसके अलावा एक इदारे की हैसियत भी रखता है जैसे कुछ अम्वाल ऐसे होते हैं जो किसी ख़ास जगह समाये नहीं जा सकते, जैसेकि ज़मीनें, तेल और गैस के कुवें, मादनियात (खनिज प्रदार्थ) के पहाड़ या ऐसे अम्वाल जो अमीरों से लेकर गरीबों में तक़सीम कर दिए जाएं और जिन्हें बैतुल माल में रखने की नौबत ही ना आए। चुनांचे बैतुल माल का इतलाक़ इस इदारे की हैसियत से भी कई बार किया जाता था और इससे मुराद कोई सिर्फ़ ख़ास मुक़ाम ही नहीं हो सकता, जैसा कि बैहक़ी رحمت اللہ علیہ ने सुनन में, इमाम अहमद رحمت اللہ علیہ ने मसनद में और अब्द अल रज़्ज़ाक़ رحمت اللہ علیہ ने अपनी तसनीफ़ में लाहक़ इब्ने हुमैद से नक़ल किया है कि हज़रत इब्ने मसऊद رضي الله عنه को क़ज़ा और बैतुल माल के लिए भेजा गया। ज़ाहिर है कि ये तो मुम्किन नहीं कि हज़रत उमर رضي الله عنه ने हज़रत इब्ने मसऊद رضي الله عنه को बैतुल माल का पहरेदार बनाया हो, इससे मुराद यही है कि उन्हें बैतुल माल के इदारे पर निगरां नियुक्त किया कि वो अम्वाल वसूल करें और उन्हें तक़सीम करें। इसी माने में अल ज़ुहद में इब्ने मबारक رحمت اللہ علیہ ने हज़रत हसन  رضي الله عنه से रिवायत नक़ल की है, कि बसरा के शासक हज़रत अबु मूसा अल अशअरी رضي الله عنه के साथ हज़रत उमर رضي الله عنه के पास आए और उनसे गुज़ारिश की कि वो उनके लिए रिज़्क का बंदोबस्त करें, हज़रत उमर ने उनसे बातचीत की और आख़िर में फ़रमाया: ए जमाअते उमरा तुम्हारे लिए बैतुल माल से दो बकरीयां और सींची हुई ज़मीन के दो टुकड़े मुक़र्रर करता हूँ। यहां बैतुल माल से मुराद इदाराये  बैतुल माल है।

बैतुल माल की आमदनी और ख़र्चों पर ख़लीफ़ा का अधिकार होता है, चुनांचे जब हज़रत उस्मान ने जंगे तबूक के वक़्त जैश ‘अल उसरा’ के लिए माल दिया तो हुज़ूरे अकरम صلى الله عليه وسلم ने इस माल को अपने हुजरे ही में वसूल फ़रमाया। मुसनद अहमद, तिरमिज़ी और हाकिम ने अब्दुर्रहमान इब्ने समरा से रिवायत नक़ल की है जिसे तिरमिज़ी رحمت اللہ علیہ  ने हसन और ग़रीब और हाकिम ने सही बताया है और अल्लामा ज़हबी رحمت اللہ علیہ ने इसकी पुष्टी की है, कहते हैं कि जब जैश अल उसरा तैयार हो रहा था तो हज़रत उस्मान رضي الله عنه हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم के हुजरे में तशरीफ़ लाए और एक हज़ार दीनार हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم की ख़िदमत में पेश किए जिसे आप  صلى الله عليه وسلم ने वहीं क़बूल किया और आप बार बार फ़रमाते रहे:

((ما ضر عثمان ما عمل بعد ھذا الیوم))
आज के बाद उस्मान رضي الله عنه कुछ भी करें उन्हें इस का नुक़्सान नहीं होगा।

कई बार अम्वाल (funds) की तक़सीम हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم बज़ाते ख़ुद ही फ़रमाते थी चुनांचे बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत अनस رضي الله عنه से रिवायत नक़ल है कि जब बहरीन से अम्वाल आए तो आँहज़रत  صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया:

((انثروہ فی المسجد۔۔۔))
इसको मस्जिद में फैला दो

फिर जब नमाज़ ख़त्म हुई तो आप  صلى الله عليه وسلم वहीं बैठे और जिस किसी को देखते उसे इस माल में से कुछ ना कुछ देते रहे यहां तक कि जब आप उठे तो एक दिरहम भी ना बचा था। बुख़ारी शरीफ़ में हज़रत जाबिर رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم उनसे वादा फ़रमाया था:

((لو قد جاء مال البحرین لقد أعطیتک ھکذا وھکذا وھکذا ))

अगर बहरीन से अम्वाल आ गए होते तो मैं तुम्हें उसे ऐसे और ऐसे और ऐसे अता करता। यानी तीन बार

फिर हुज़ूरे अकरम صلى الله عليه وسلم की वफ़ात के बाद वो अम्वाल आए तो हज़रत अबुबक्र رضي الله عنه ने ऐलान किया कि जिस किसी का आप  صلى الله عليه وسلم पर क़र्ज़ बाक़ी हो या आप ने किसी से वादा किया हो तो वो आए। चुनांचे हज़रत जाबिर رضي الله عنه आगे आए और कहा कि आप ने मुझ से तीन बार देने का वादा किया था। इसके अलावा जैसा अभी सुफ़ियान सक़फ़ी की रिवायत में गुज़रा कि उन्हें चमड़े की एक थैली मिली थी जिसे उन्होंने हज़रत उमर رضي الله عنه को दे दी और उन्होंने बैतुल माल में दाख़िल कर ली। इमाम शाफ़ई अपनी तसनीफ़ अल उम्म में रिवायत करते हैं कि हमें कई अहले इल्म से मालूम हुआ है कि जब ईराक़ के अम्वाल हज़रत उमर رضي الله عنه को पेश किए गए तो बैतुल माल के ज़िम्मेदार ने कहा कि मैं उन्हें बैतुल माल में रख देता हूँ, हज़रत उमर ने फ़रमाया: नहीं! क़सम है काअबे के रब की, जब तक मैं इस माल को तक़सीम ना कर दूँ ये बैतुल माल की छत के नीचे नहीं जा सकता। फिर हज़रत उमर رضي الله عنه ने हुक्म दिया कि इस माल को मस्जिद में रख दिया जाये फिर उसको चादर से ढांक कर इस पर अंसार और मुहाजिरीन के पहरेदार मुक़र्रर कर दिए गए। अगले रोज़ सुबह आप رضي الله عنه के साथ हज़रत अब्बास رضي الله عنه  और हज़रत अब्दुर्रहमान इब्ने औफ رضي الله عنه , हज़रत उमर رضي الله عنه का हाथ थामे, तशरीफ़ लाए और इस माल के ऊपर से चादर हटाई तो वो ऐसा मंज़र था जो इससे पहले कभी नहीं देखा गया था इस में सोना, याक़ूत (sapphire), ज़बरजद (chrysolite) और चमकते हुए मोती थे जिन्हें देख कर हज़रत उमर رضي الله عنه पड़े। इस पर उन अस्हाब में से एक ने कहा कि बख़ुदा ये दिन रोने का नहीं बल्कि शुक्र और सुरूर का दिन है। हज़रत उमर رضي الله عنه ने फ़रमाया: जो तुम देख रहे हो, मैं वो नहीं सोच रहा बल्कि ये कि जब भी इस क़ौम में दौलत की बोहतात होगी आपस में उनके दिल शदीद हो जाएंगे। फिर क़िब्ला की तरफ रुख़ किया और अपने हाथ ऊपर उठा कर फ़रमाया: ऐ अल्लाह मैं हलाक किए जाने से तेरी पनाह मांगता हूँ मैंने तेरा फ़रमान सुना है कि:

وَأُمۡلِى لَهُمۡۚ إِنَّ كَيۡدِى مَتِينٌ
हम उन्हें यके बाद दीगरे हलाक करेंगे जहां से वो नहीं जानते। (तर्जुमा माअनीये क़ुरआन: अल आराफ-183) "We lead them on from whence they do not know".
اور میں انہیں مہلت دوں گا بے شک میری تدبیر بڑی مضبوط ہے

फिर आप رضي الله عنه ने सुराक़ा इब्ने जाशम के बारे में पूछा कि वो कहाँ हैं? और उन्हें किसरा के कंगन पेश किए और फ़रमाया कि उनको पहन लो। वो कंगन पहन कर सुराक़ा इब्ने जाशम ने कहा: अल्लाहु अकबर! हज़रत उमर ने फ़रमाया: अल्लाहु अकबर! कहो कि अलहम्दुलिल्लाह जिस ने किसरा इब्ने हिर्मिज़ के कंगन छीन कर बनी मुदलज के एक आराबी सुराक़ा इब्ने जाशम को पहनाए! इसी तरह सुंन दारमी में अब्दुल्लाह इब्ने उमरो से मर्वी है कि हज़रत उस्मान رضي الله عنه के दौरे ख़िलाफ़त में हज़रत अली رضي الله عنه के ग़ुलाम का इंतिक़ाल हुआ और उनका कोई वारिस नहीं था तो हज़रत उस्मान رضي الله عنه ने हुक्म दिया कि इनका माल बैतुल माल में जमा कर दिया जाये। अल इस्तिज़कार में हज़रत अनस इब्ने सीरीन से मर्वी है हज़रत अली رضي الله عنه तमाम अम्वाल तक़सीम कर दिया करते थे यहां तक कि बैतुल माल ख़ाली हो जाता और आप इस में पानी का छिड़काओ करके बैठा करते थे।
कई दफा हुज़ूर नबी अकरम  صلى الله عليه وسلم अम्वाल की तक़सीम और और दूसरे मुआमलात लोगों के ज़िम्मे फरमा दिया करते थे, जैसेकि बुख़ारी शरीफ़ की ये हदीस:

)ذکرت شئیاً من تبر عندنا فکرھت أن یحبسنی فأمرت بقسمتہ۔)
मुझे ख़्याल हुआ कि हमारे पास कुछ सोना पड़ा है, और मुझे ये नागवार हुआ कि वो रात भर हमारे पास पड़ा रहे लिहाज़ा मैंने उसे तक़सीम करने का हुक्म दे दिया है।

या इब्ने शिहाब की ये रिवायत जिसे इब्ने शयबा رحمت اللہ علیہ ने नक़ल किया है और अल्लामा हाफ़िज़ इब्ने हजर अस्कलानी رحمت اللہ علیہ, अल्लामा अल मुंज़िरी رحمت اللہ علیہ और हैसमी رحمت اللہ علیہ  ने इस रिवायत को हसन बताया है कि हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم हज़रत बिलाल رضي الله عنه के मख़ज़न (गोदाम) में दाख़िल हुए जहां सदक़ात के अम्वाल रखे जाते थे, वहाँ आप ने कुछ खजूरें रखीं देखीं तो हज़रत बिलाल رضي الله عنه से पूछा: ऐ बिलाल! ये खजूरें कैसी रखीं हैं? हज़रत बिलाल رضي الله عنه ने अर्ज़ किया कि ऐ अल्लाह के रसूल صلى الله عليه وسلم, ये मैंने वक़्ते ज़रूरत के लिए उठा रख़ीं हैं।आप صلى الله عليه وسلم ने फ़रमाया: तुम्हें यक़ीन है कि तुम सुबह बख़ैर उठोगे और ये जहन्नुम की गर्मी ना बनेंगी? उन्हें ख़र्च कर दो और आसमानों के रब से क़िल्लत या तंगी की तवक़्क़ो ना रखो। इस हदीस में ये भी आता है कि हज़रत अब्दुर्रहमान इब्ने औफ़ رضي الله عنه ऊँट और बकरीयों के सदक़ात और हज़रत बिलाल رضي الله عنه फलों के सदक़ात के ज़िम्मेदार थे जबकि मियामह इब्ने जुज़ رضي الله عنه ख़मस पर मामूर थे। while Mahmiyyah ibn Juz' used to take charge of the fifth (of the Messenger of Allah and his household)". अल्लामा ख़लीफा رحمت اللہ علیہ कहते हैं कि हज़रत बिलाल رضي الله عنه हुज़ूरे अक़्दस के नफ्क़े (expenses) पर नियुक्त थे।

सही इब्ने हिब्बान में अब्दुल्लाह इब्ने लेह رحمت اللہ علیہ से रिवायत है वो कहते हैं कि मैं मुअज़्ज़िने रसूल हज़रत बिलाल رضي الله عنه से मिला और उनसे पूछा कि हुज़ूरे अक़्दस صلى الله عليه وسلم  का नफक़ा क्या था? उन्होंने जवाब दिया कि उनके पास कुछ भी नहीं था, जब से वो नबी मबऊस हुए मैं उस वक़्त से उनकी वफ़ात तक में ही उसकी देख भाल करता था, जब कोई तंगदस्त मुसलमान आप صلى الله عليه وسلم के पास हाज़िर होता तो आप मुझे हुक्म देते और मैं कुछ क़र्ज़ हाँसिल करके उसके लिए कपड़ा वग़ैरा मुहय्या करता और उसे पहना ओढ़ा कर खाना खिलाता था। मुस्लिम शरीफ़ में हुज़ूरे अक़्दस صلى الله عليه وسلم  के ख़ादिम अबी राफ़े رضي الله عنه से रिवायत है कि हुज़ूरे अक़्दस صلى الله عليه وسلم ने किसी शख़्स से एक ऊंट का बच्चा बतौर क़र्ज़ लिया था, फिर जब आप के पास सदक़े के ऊंट आए तो उन्होंने मुझे वो ऊंट वापिस करने का हुक्म दिया। अबी राफ़े رضي الله عنه कहते हैं कि मैंने हुज़ूरे अक़्दस صلى الله عليه وسلم  को बताया कि मुझे कोई ऊंट का बच्चा नहीं मिला चुनांचे मैंने इससे बेहतर और बड़ी उम्र का ऊंट वापस किया। इस पर हुज़ूरे अक़्दस  صلى الله عليه وسلم ने फरमाया: वही उसे दो , बहतर वो लोग हैं जो क़र्ज़ को उम्दगी से अदा करते हैं और हज़रत अब्बास رضي الله عنه  से बुख़ारी और मुस्लिम शरीफ मैं रिवायत नक़ल है कि जब हुज़ूरे अक़्दस ने हज़रत माअज़ इब्ने जबल رضي الله عنه यमन भेजा तो उनसे फरमाया

(( فإن أطاعوک فأعلمھم أن اللّٰہ قد افترض علیھم صدقۃ تؤخذ من أغنیاءھم فترد علی فقراءھم، فإن ھم أطاعوک لذلک،فإیاک و کرائم أموالھم، واتق دعوۃ المظلوم فإنہ لیس 
بینھا وبین اللّٰہ حجاب۔))

जब वो तुम्हारी बात मान लें तो उन्हें बताओ कि अल्लाह ने उन पर सदक़ा मुक़र्रर किया है कि उनके अमीरों से वसूल किया जाये और उनके ग़रीबों में बांटा जाये, अगर वो मान लें तो ख़बरदार उनके माल के बेहतर हिस्सा को छोड़ दो और मज़लूम की आह से बचो, क्योंकि उसके और अल्लाह के बीच कोई हिजाब नहीं होता।

और सहीहीन में हज़रत अबु हुरैरह رضي الله عنه से मर्वी है कि हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم  ने हज़रत उमर को सदक़े की वसूली पर नियुक्त किया था
हुज़ूरे अकरम  صلى الله عليه وسلم के बाद ख़ुलफ़ाए राशिदीन رضی اللہ عنھم भी आप صلى الله عليه وسلم ही के तरीक़े पर रहे और अम्वाल के मुआमलात पर अपने सिवा दूसरों को ज़िम्मेदारी दी, चुनांचे इब्ने इस्हाक़ और अल्लामा ख़लीफ़ा कहते हैं हज़रत अबुबक्र رضي الله عنه ने बैतुल माल की ज़िम्मेदारी हज़रत अबु उबैदा इब्ने अलजर्राह رضي الله عنه को सौंपी और बाद में उन्हें शाम भेजा। मुयक़ीब के तर्जुमे में अल्लामा ज़हबी رحمت اللہ علیہ कहते हैं कि हज़रत अबुबक्र رضي الله عنه और हज़रत उमर رضي الله عنه ने उन्हें यअनी हज़रत अबु उबैदा इब्ने अलजर्राह رضي الله عنه को बैतुल माल का ज़िम्मेदार बनाया। इब्ने इस्हाक़ ने हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर رضي الله عنه से नक़ल किया है जिसे हाकिम رحمت اللہ علیہ ने हसन रिवायत बताया है कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने अरक़म رضي الله عنه को हज़रत अबुबक्र رضي الله عنه ने अपना कातिबे तहरीर बनाया और बैतुल माल की ज़िम्मेदारी सौंपी थी और हज़रत उमर رضي الله عنه ने उन्हें इन दोनों कामों पर बरक़रार रखा। इब्ने साद رحمت اللہ علیہ ने तबक़ात में और अल्लामा इब्ने हजर رحمت اللہ علیہ ने अल इसाबा में नक़ल किया है कि हज़रत उमर رضي الله عنه ने अपने ग़ुलाम यस्सार इब्ने नुमैर को अपना ख़ज़ानची मुक़र्रर किया था। इमाम अहमद رحمت اللہ علیہ ने अपनी मसनद में और अब्द अल रज़्ज़ाक़ رحمت اللہ علیہ ने अपनी ‘अल मुसन्निफ़’ में लाहिक़ इब्ने हमीद से रिवायत किया है कि हज़रत इब्ने मसऊद رضي الله عنه को बैतुल माल और (कूफ़ा में) क़ज़ा की ज़िम्मेदारीयां दी गई थीं। यही बात ख़लीफा  رحمت اللہ علیہ मालिक इब्ने अनस رضي الله عنه से और वो हज़रत जै़द इब्ने असलम رضي الله عنه  से रिवायत करते हैं कि हज़रत उमर رضي الله عنه ने अब्दुल्लाह इब्ने अरक़म رضي الله عنه को बैतुल माल की ज़िम्मेदारी दी। इब्ने ख़ुज़ैमा رحمت اللہ علیہ अपनी सही में उरवा इब्ने ज़ुबैर رضي الله عنه से नक़ल करते हैं कि अब्दुर्रहमान इब्ने अब्दुल क़ारी ने कहा कि मैं हज़रत उमर इब्ने ख़त्ताब رضي الله عنه के दौर में बैतुल माल पर नियुक्त था। अल्लामा इब्ने हजर رحمت اللہ علیہ ‘अल फतह’ में हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضي الله عنه के फ़ज़ाइल (virtues/गुण) का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि हज़रत अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद رضي الله عنه, हज़रत उमर رضي الله عنه,और हज़रत उस्मान رضي الله عنه के ज़माने के दौरान क़ूफा में बैतुल माल की ज़िम्मेदारी सँभाली थी। इसी तरह जहशयारी رحمت اللہ علیہ अपनी तसनीफ़ ‘अल वुज़रा वल कुत्ताब’ में लिखते हैं कि अब्दुल्लाह इब्ने अरक़म इब्ने अब्दे यग़ूस हुज़ूरे अक़्दस صلى الله عليه وسلم  के एक कातिब (scribes) थे जिन्हें बैतुल माल की ज़िम्मेदारी भी दी गई थी। हाकिम رحمت اللہ علیہ अपनी मुस्तदरक में ज़ुबैर इब्ने बक्कार से रिवायत करते हैं कि अब्दुल्लाह इब्ने अरक़म इब्ने अब्दे यग़ूस हज़रत उमर इब्ने ख़त्ताब  رضي الله عنه के दौर में बैतुल माल पर नियुक्त थे और हज़रत उस्मान رضي الله عنه के दौर में भी अपनी वफ़ात तक रहे जिनसे उनकी दोस्ती थी। हाफ़िज़ इब्ने अब्दे बर رحمت اللہ علیہ अपनी तसनीफ़ ‘अल इस्तिआब’ में लिखते हैं कि हज़रत जै़द इब्ने साबित رضي الله عنه हज़रत उस्मान رضي الله عنه के दौर में बैतुल माल पर नियुक्त थे, हज़रत जै़द इब्ने साबित رضي الله عنه के एक ग़ुलाम थे जिनका नाम वहीब था, हज़रत उस्मान رضي الله عنه ने मुनासिब समझा कि उन्हें भी बैतुल माल की ख़िदमत के लिए रख लिया जाये चुनांचे हज़रत जै़द इब्ने साबित رضي الله عنه से पूछा कि ये कौन हैं, उन्होंने बताया कि ये उनके ग़ुलाम हैं, तो हज़रत उस्मान رضي الله عنه ने कहा कि मैं कुछ मुसलमानों को इस काम नियुक्त करना चाहता हूँ और इसे भी हक़ है लिहाज़ा में इसकी तनख़्वाह तय कर देता हूँ और उसकी दो हज़ार तनख़्वाह मुक़र्रर की, हज़रत जै़द رضي الله عنه ने कहा कि इस ग़ुलाम के लिए दो हज़ार ना कीजिए, चुनांचे हज़रत उस्मान رضي الله عنه ने एक हज़ार मुक़र्रर कर दी। अल्लामा अल सदफ़ी رحمت اللہ علیہ अपनी एक तसनीफ़ ‘औलमाऐ मिस्र और सहाबाऐ किराम’ में लिखते हैं कि हज़रत राफ़े رضي الله عنه, हज़रत अली رضي الله عنه के पास पहुंचे और उन्होंने हज़रत राफ़े رضي الله عنه को क़ूफा के बैतुल माल की ज़िम्मेदारी पर नियुक्त कर दिया । इब्ने अब्दे बर ‘अल इस्तिआब’ में लिखते हैं कि हज़रत राफ़े رضي الله عنه हज़रत अली رضي الله عنه के दौर में खजांची (treasure) और कातिब (scribes) थे ।अल ऐनी ने उमदातुल क़ारी में लिखा है कि अब्दुल्लाह इब्ने वह्ब अल सुवाई से हज़रत अली رضي الله عنه बहुत लगाव रखते थे और उनका एहतिराम और उन पर भरोसा करते थे, लिहाज़ा उन्हें क़ूफा के बैतुल माल की ज़िम्मेदारी सौंप दी थी। हज़रत अली رضي الله عنه ने हज़रत ज़ियाद رضي الله عنه को बसरा के बैतुल माल पर नियुक्त किया था, जहशयारी رحمت اللہ علیہ लिखते हैं कि जब वो बसरा पहुंचे तो उन्हें ख़िराज और दीवान की ज़िम्मेदारी भी दी गई।
बैतुल माल को दो हिस्सों पर बाँटा जा सकता है:

आमदनी की क़िस्म, जिसको और तीन दीवान पर विभाजित किया जा सकता है:- 
 
v फेय और ख़िराज का दीवान: जिसमें मवेशी, ख़िराज ज़मीनें, जिज़िये, फेय और ज़राइब (Taxes) शामिल हैं।

v जन संपत्ति का दीवान: तेल (Petroleum), गैस, बिजली, मादनियात (Minerals), समुंद्र, नदियां, झीलें, चश्मा, जंगलात, चरागाहें (Pastures) और पनाह गाहें (Shelters)

v सदक़ात का दीवान: ज़कात की नक़द राशि, तिजारत, कृषि और फल, ऊंट, गाय, और बकरीयां।

ख़र्चे की क़िस्म, जो आठ दीवान पर आधारित है:-

v दारुल ख़िलाफा का दीवान

v मुआमलाते रियासत का दीवान

v तहाइफ़ (grants) का दीवान

v जिहाद का दीवान

v सदक़ात के ख़र्चे का दीवान

v जन संपत्ति के ख़र्चे का दीवान

v दीवान हंगामी (emergency)

v मीज़ानिया आम्मा (General Budget), मुहासिबा आम्मा (Accounts) और मुराक़बा आम्मा (General Monitoring) का दीवान ।


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