सवाल (13) पश्चिमी देशों की सीरिया के मुताल्लिक़ क्या रणनीति हैं?
जवाब : अमरीका का पूर्व राजदूत ''रियान कोकर'' जब सीरिया यात्रा पर आया तो उसनें पश्चिम की रणनीति के बारे में एक बयान दिया जिसमें उसनें कहा ''हमारा मुकाबला एक ऐसे भविष्य से हैं जिसमें असद शामिल हैं। हालांकि हम लोग उसे बहुत बुरा मान रहे हैं मगर उससे भी बुरी कोई चीज़ हैं।''
जनवरी 2014 में स्विजरलैण्ड में हुई जैनिवा-2 कांफ्रेंस में इन्होंनें सीरिया के कई अलग-अलग गिरोह को ध्यान में रखते हुए य़ह बात कही। पश्चिमी देशों नें ऐसा विपक्षी दल (अपोजिशन ग्रुप) खडा़ करनें की पूरी कोशिश की जिसकी सीरिया में कुछ पकड़ हो, जिसे आवाम लीडर के तौर पर स्वीकार करें, इस तरह पश्चिमी ताक़ते अपनी मनचाही हुकूमत बनानें में क़ामयाब हो जाये।
असद की हुकूमत से टूटकर आई फ्री सीरियन आर्मी नें बाग़ीयों का साथ दिया था। शुरू शुरू में असद हुकूमत के खिलाफ लड़नें मे यह आर्मी हावी रही थी। धीरे-धीरे अवाम इनके साथ जुड़ती चली गई। इसके बाद पश्चिम नें बाग़ीयों मे मौजूद जम्हूरीयत पसन्दो को आगे लाकर उन्हें हुकूमत सौंपनें की भरपूर कोशिशे कीं इस तरह हुक्मराँ का सिर्फ चेहरा बदल दिया जाए और सीरियाई पॉलिसी पहले की तरह उनके हित में रहें।
इस्लामी इत्तेहादी गिरोह धीरे-धीरे फ्री सीरियन आर्मी पर हावी होते चले गऐ और फ्री सीरियन आर्मी का वजूद खत्म हो गया। इसी बीच पश्चिमी देशों द्वारा निर्मित ''नेंशनल कोलिशन'' नाम का संघठन ऊभर कर सामनें आया। इस संघठन नें अपना समय सीरिया से ज़्यादा लंदन, पेरिस और वाशिंगठन में बिताया। इस संघठन के सभी सदस्य सीरियाई मूल के पश्चिमी देशों के निवासी थें जिन्हें इक्ट्ठा करके आवाम के सामनें बतौर लीडर पेश करनें की कोशिश की गई।
यही खेल अफगानिस्तान और ईराक़ में भी खेला गया, अफगानिस्तान के प्रसिडेंट हामिद करजाई का अफगानिस्तान से कोई ताल्लुक नही था। अमेंरिका में बरसो से रह रहें हामिद करजाई को अमरीका नें उठा कर आफगानिस्तान का प्रसिडेंट बना दिया था।
इसी तरह यूरोपीयन देशों में रहनें वाले मालिकी नाम के शख्स को अमरीका नें ईराक़ में बिठाया। यह चीज़ इन्होंनें सीरिया में दौहरानें की कोशिश की जिसमें वोह क़ामयाब नही हो पाए।
दिसम्बर 2012 में, नेंशनल कोलिशन की फौजी (सैन्य) ब्राचं ''द सुप्रीम मिलिट्री कौंसिल'' को बेईज़्ज़ती का सामना करना पड़ा। जिसे पश्चिमी देशों नें हथियार, ट्रेनिंग और दौलत से काफी मदद की थी। इसके बाद फ्री सीरियान आर्मी नें अपनें कई हेडक्वाटर खोए।
सीरिया के लिए, पश्चिम की रणनीति हमेशा बुनियाद परस्त (Radical Factions) यानी इस्लामी शरीयत को चाहनें वालों की जद्दोजहद को कमजोर करनें की रही हैं, जिसके लिए उसनें, बाज़ दफा दूसरे देशों से भी मदद ली है। कई बार इस्लाम पसन्द बागियों का असद हुकूमत से ध्यान हटानें और उनका हौसला तोड़नें के लिए आपसी टकराव को भी काफी ऊजागर किया। इसी नीति के तहत पश्चिमी ताक़तें, एक और रणनीति काम में लेती हैं जिसे ''इनफिलट्रेशन'' कहते हैं। जिसमें उन्हीं की शक्ल और उन्हीं की तरह बात करनें वाले मुखबरों को गिरोह में दाखिल कर दिया हैं जो धीरे-धीरे वफादार बनकर लोगों को वरगलाना और भटकाना शुरू कर देते हैं। पश्चिमी ताक़तों नें मुस्लिम देशों की सभी बगावतों में यही तकनीक अपनाई हैं। जीनिवा कांफ्रेंस में भी गिरोहो की आपसी लडा़ई को भरपूर ऊजागर किया गया। इस तरह बाग़ीयों कि आपसी खाई और बढ़ जाए। इस कांफ्रेंस में मॉडरेट लोगो (ऐतदाल पसंद) को जोड़नें और इस्लाम पसंदो को अलग करनें का भी ईशारा किया।
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