ख़िलवत और जिलवत में ख़ौफे इलाही

अल्लाह रब्बुलइज़्ज़त की ख़शीयत (डर) का होना फ़र्ज़ है, और किताब और सुन्नत इस पर दलील हैं, चुनांचे अल्लाह سبحانه وتعالیٰ ने कु़रान मजीद में इसका ज़िक्र फ़रमायाः

وَ اِيَّايَ فَاتَّقُوْنِ

और मुझ से ही डरो। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: बक़रह -41)

وَ اِيَّايَ فَارْهَبُوْنِ

और मुझ ही से ख़ौफ़ खाओ (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: बक़रह -40)

اِنَّمَا ذٰلِكُمُ الشَّيْطٰنُ يُخَوِّفُ اَوْلِيَآءَهٗ١۪ فَلَا تَخَافُوْهُمْ وَ خَافُوْنِ اِنْ كُنْتُمْ مُّؤْمِنِيْنَ
वो तो शैतान है जो अपने दोस्तों को डराता है, पस तुम उनसे ना डरो, बल्कि मुझ ही से डरो अगर तुम मोमिन हो।
(तर्जुमा मआनिये क़ुरआन: आले इमरान-175)
وَ يُحَذِّرُكُمُ اللّٰهُ نَفْسَهٗ١ؕ وَ اِلَى اللّٰهِ الْمَصِيْرُ

और ख़ुदा तुम्हें अपना ख़ौफ़ दिलाता है
(तर्जुमा मआनिये क़ुरआनः आले इमरान-28)
فَلَا تَخْشَوْهُمْ وَ اخْشَوْنِ١ؕ
तो तुम उनसे ना डरो बल्कि मुझ ही से डरो, (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अल माइदा-03)

يٰۤاَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوْا رَبَّكُمُ
ऐ लोगो! अपने रब का डर रखो, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: अन्निसा-01)

اِنَّمَا الْمُؤْمِنُوْنَ الَّذِيْنَ اِذَا ذُكِرَ اللّٰهُ وَ جِلَتْ قُلُوْبُهُمْ
मोमिन तो वही लोग हैं जिन के दिल उस वक़्त जबकि अल्लाह का ज़िक्र किया जाये लरज़ जाऐं। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः अलअनफ़ाल-02)

وَ كَذٰلِكَ اَخْذُ رَبِّكَ اِذَاۤ اَخَذَ الْقُرٰى وَ هِيَ ظَالِمَةٌ١ؕ اِنَّ اَخْذَهٗۤ اَلِيْمٌ شَدِيْدٌ۰۰۱۰۲ اِنَّ فِيْ ذٰلِكَ لَاٰيَةً لِّمَنْ خَافَ عَذَابَ الْاٰخِرَةِ١ؕ ذٰلِكَ يَوْمٌ مَّجْمُوْعٌ١ۙ لَّهُ النَّاسُ وَ ذٰلِكَ يَوْمٌ مَّشْهُوْدٌ۰۰۱۰۳ وَ مَا نُؤَخِّرُهٗۤ اِلَّا لِاَجَلٍ مَّعْدُوْدٍؕ۰۰۱۰۴ يَوْمَ يَاْتِ لَا تَكَلَّمُ نَفْسٌ اِلَّا بِاِذْنِهٖ١ۚ فَمِنْهُمْ شَقِيٌّ وَّ سَعِيْدٌ۰۰۱۰۵ فَاَمَّا الَّذِيْنَ شَقُوْا فَفِي النَّارِ لَهُمْ فِيْهَا زَفِيْرٌ وَّ شَهِيْقٌۙ

तेरे रब की पकड़ जबकि वो किसी ज़ालिम बस्ती को पकड़ लेता है एैसी ही होती है बेशक उसकी पकड़ बड़ी दर्दनाक, निहायत सख़्त होती है। इस में यक़ीनन उस शख़्स के लिए एक निशानी है जो आख़िरत के अ़ज़ाब से डरता हो, वो एक ऐसा दिन होगा जिस में सारे इंसान जमा होंगे और जिस में सब ही कुछ आँखों के सामने होगा हम उसे सिर्फ़ थोड़ी मुद्दत के लिए ही टाल रहे हैं। या जिस वक़्त वो (दिन) आएगा, तो उसकी इजाज़त के बग़ैर कोई शख़्स बात तक ना कर सकेगा या फिर कोई तो उनमें बदबख़्त होगा और कोई ख़ुशनसीब होगा। तो जो बदबख़्त होंगे वो आग में होंगे, जहाँ उन्हें सांस खींचना और फुन्कार मारना है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: हूद-102 से 106)

وَ الَّذِيْنَ يَصِلُوْنَ مَاۤ اَمَرَ اللّٰهُ بِهٖۤ اَنْ يُّوْصَلَ وَ يَخْشَوْنَ رَبَّهُمْ وَ يَخَافُوْنَ سُوْٓءَ الْحِسَابِؕ
और जो ऐसे लोग हैं के अल्लाह ने जिसे जोड़ने का हुक्म दिया है, उसे जोड़ते हैं, और अपने रब से डरते रहते हैं, और बुरे हिसाब का डर उन्हें लगा रहता है। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआने करीमः रअद -21)

ذٰلِكَ لِمَنْ خَافَ مَقَامِيْ وَ خَافَ وَعِيْدِ
ये उसके लिए है जिसे मेरे हुज़ूर पेशी का ख़ौफ़ हो, और जो मेरी वईद से डरे। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने करीम: इब्राहीम-14)

يٰۤاَيُّهَا النَّاسُ اتَّقُوْا رَبَّكُمْ١ۚ اِنَّ زَلْزَلَةَ السَّاعَةِ شَيْءٌ عَظِيْمٌ (*) يَوْمَ تَرَوْنَهَا تَذْهَلُ كُلُّ مُرْضِعَةٍ عَمَّاۤ اَرْضَعَتْ وَ تَضَعُ كُلُّ ذَاتِ حَمْلٍ حَمْلَهَا وَ تَرَى النَّاسَ سُكٰرٰى وَ مَا هُمْ بِسُكٰرٰى وَ لٰكِنَّ عَذَابَ اللّٰهِ شَدِيْدٌ

ऐ लोगो, अपने रब का डर रखो! हक़ीक़त ये है के क़यामत की घड़ी का ज़लज़ला बड़ी हौलनाक चीज़ है। जिस दिन तुम देखोगे, हाल ये होगा के हर दूध पिलाने वाली अपने दूध पीते बच्चे को भूल जाऐगी, और हर हामिला अपना हमल गिरा देगी, और लोगों को तुम मदहोश देखोगे, हालाँके वो नशे में ना होंगे, बल्कि अल्लाह का अ़ज़ाब है ही सख़्त चीज़। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीमः हज्ज -1,2)

وَ لِمَنْ خَافَ مَقَامَ رَبِّهٖ جَنَّتٰنِۚ
मगर जो अपने रब के हुज़ूर खड़े होने का ख़ौफ़ रखता होगा, उसके लिए दो बाग़ हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीमः अर्रहमान -46)

مَا لَكُمْ لَا تَرْجُوْنَ لِلّٰهِ وَقَارًا
तुम्हें क्या हो गया है के तुम (अपने दिलों में) अल्लाह के लिए किसी वक़ार और अ़ज़मत की तवक़्क़ो नहीं रखते, (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीमः नूह -13)

يَوۡمَ يَفِرُّ ٱلۡمَرۡءُ مِنۡ أَخِيهِ ( ٣٤* ) وَأُمِّهِۦ وَأَبِيهِ ( ٣٥* ) وَصَـٰحِبَتِهِۦ وَبَنِيهِ (* ٣٦ ) لِكُلِّ ٱمۡرِىٍٕ۬ مِّنۡہُمۡ يَوۡمَٮِٕذٍ۬ شَأۡنٌ۬ يُغۡنِيهِ (* ٣٧ )

जिस रोज़ आदमी भागेगा अपने भाई से, अपनी माँ और अपने बाप से, और अपनी बीवी से और अपने बेटों से, उनमें से हर एक शख़्स को उस दिन ऐसी पड़ी होगी के जो उसे दूसरों से बे परवाह कर देगी। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन अ़ज़ीमः अ़बस-34 से 37)

सुन्नते रसूल (صلى الله عليه وسلم) और आसारे सहाबा رضی اللہ عنھم भी अपने अल्फाज़ और मआनिये के ऐतबार से ख़ौफ़े इलाही के वाजिब होने पर दलालत करते हैं। चुनांचे हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से मुत्तफिक़ अ़लैह हदीस रिवायत है रसूले अकरम ने फ़रमायाः

((سبعۃ یظلھم اللّٰہ في ظلہ، یوم لا ظل إلا ظلہ: إمام عادل، وشاب نشأ في عبادۃ اللہ عز وجل، ورجل قلبہ معلق بالمساجد، ورجلان تحابا في اللہ، اجتمعا علیہ، وتفرقا علیہ، ورجل دعتہ امرأۃ ذات منصب وجمال، فقال إني أخاف اللہ، ورجل تصدق بصدقۃ فأخفاھا، حتی لا تعلم شمالہ ما تنفق یمینہ، ورجل ذکر اللہ خالیا، ففاضت عیناہ))

सात लोग ऐसे हैं जिन को अल्लाह अपने साये में जगह देगा, उस दिन जब सिवाए अल्लाह के साये के कोई और साया ना होगाः 1: आदिल इमाम और ख़लीफ़ा। 2: वो नौजवान जिसकी जवानी अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल की इ़बादत में गुज़री। 3: वो आदमी जिस का दिल मस्जिद में लगा रहता है। 4: वो दो आदमी जिन की मुहब्बत अल्लाह के लिए होती है उनका मिलना भी अल्लाह के लिए होता है और उनकी जुदाई भी अल्लाह के लिए होती है। 5: ऐसा आदमी जिसे ख़ूबसूरत और मालदार औरत (बदकारी की) दावत दे तो वोह कहे मैं अल्लाह से ख़ौफ़ खाता हूँ। 6: वो आदमी जो सद्क़ा करे और उसको छुपाऐ यहाँ तक के उसका बायां हाथ ना जान सके के दाऐं हाथ ने क्या ख़र्च किया। 7: वो आदमी जो तन्हाई में अल्लाह को याद करे और उसकी आँखों से आँसू बह जाऐं।

इसी तरह हज़रत अनस (رضي الله عنه) से मरवी है वो कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने ख़ुतबा दिया के हम ने ऐसा ख़ुतबा कभी नहीं सुना था। आप ने फ़रमायाः

((لو تعلمون ما أعلم لضحتکم قلیلاً ولبکیتم کثیرًا))
अगर तुम वो चीज़ें जान लो जो मैं जानता हूँ तो तुम हंसोगे कम और रोओगे ज़्यादा।

अ़दी बिन हातिम (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ما منکم من أحد إلا سیکملہ اللہ، لیس بینہ وبینہ ترجمان، فینظر أیمن منہ فلا یری إلا ما قدم، وینظر أشأم منہ فلا یری إلا ماقدم، وینظر بین یدیہ فلا یری إلا النار تلقاء وجھہ فاتقوا النار ولو بشق تمرۃ))

तुम में से हर एक शख़्स से अल्लाह अज़्ज़ व जल्ल कलाम करेगा। और अल्लाह और उस शख़्स के बीच कोई तर्जुमान ना होगा। पस आदमी अपने दाएं जानिब देखेगा तो अपने आमाल के सिवा कुछ ना दिखाई देगा, फिर अपने बाएं जानिब देखेगा तो अपने आमाल के अ़लावा कुछ ना देख पाऐगा, फिर अपने सामने देखेगा तो चेहरे के सामने आग दिखाई देगी। लोगो! डरो आग से ख़्वाह खजूर का एक हिस्सा दे कर ही क्यों ना हो।

हज़रत आईशा से नक़ल है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((یحشر الناس یوم القیامۃ حفاۃ عراۃ غرلا، قلت یارسول اللہ الرجال والنساء جمیعاً ینظر بعضھم إلی بعض؟ قال یا عائشۃ الأمر أشد من أن یھمھم ذالک))متفق علیہ

लोग नंगे पांव, नंगे बदन और ग़ैर मख़्तून (बग़ैर ख़तने की) हालत में बरोज़ क़यामत एक जगह इकट्ठे किए जाऐेंगे। मैंने दरयाफ़्त किया ऐ रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) मर्द और औरत सब एक दूसरे की तरफ़ देखेंगे नहीं? आप ने जवाब दियाः ऐ आईशा! मुआमला इतना सख़्त और संगीन होगा के लोगों को इसका ख़्याल तक ना गुज़रेगा।

नोमान बिन बशीर (رضي الله عنه) से मरवी है के उन्होंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को फ़रमाते सुनाः

((إن اھون أھل النار عذاباً یوم القیامۃ لرجل توضع في أخمص قدمیہ جمرتان یغلي منھما دماغہ))متفق علیہ

बरोज़े क़यामत सब से कमतरीन अ़ज़ाब में जो शख़्स मुब्तिला होगा उसके पांव के नीचे दो दहकते अंगारे रखे होंगे जिन से उसका दिमाग़ खौल जाऐगा।

हज़रत इब्ने उ़मर (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((یقوم الناس لرب العالمین، حتی یغیب أحدھم في رشحہ إلی أنصاف أذنیہ)) متفق علیہ

क़यामत के दिन लोग रब्बुल आलमीन के हुज़ूर में खड़े होंगे यहाँ तक के उनका पसीना उनके कानों के दरमियान तक होगा। मुत्तफिक़ अ़लैह

हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से बुख़ारी शरीफ़ में मरवी है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः

((یعرق الناس یوم القیامۃ حتی یذھب عرقھم في الأرض سبعین ذراعاً ویلجمھم حتی یبلغ آذانھم))

क़यामत के दिन लोगों को इस क़दर पसीना आएगा के उनके पसीने ज़मीन में सत्तर (70) हाथ नीचे तक चले जाऐेंगे और वो अपने कानों तक इस पसीने में डूब जाऐेंगे।

अबू हुरैराह (رضي الله عنه) ने फ़रमाया के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) फ़रमाते हैं के अल्लाह سبحانه وتعالیٰ कहता हैः

(( إذا أراد عبدي أن یعمل سیءۃ فلا تکتبوھا علیہ حتی یعملھا، فإن عملھا فاکتبوھا بمثلھا، وإن ترکھا من أجلي فاکتبوھا لہ حسنۃ، وإذا أراد أن یعمل حسنۃ فلم یفعلھا فاکتبوھا لہ حسنۃ، فإن عملھا فاکتبوھا لہ بعشر أمثالھا إلی سبع ماءۃ ضعف))متفق علیہ

जब मेरा बंदा किसी बुरे काम का इरादा करता है तो उस अ़मल को (नामाऐ आमाल) में उस वक़्त तक ना लिखो जब तक के वो सरज़द ना हो। और अगर बुराई सरज़द हो जाती है तो सिर्फ़ उतनी ही लिखो। और अगर वोह इस बुराई को मेरी ख़ातिर तर्क कर देता है तो उसके लिए एक नेकी दर्ज कर दो। और जब वो किसी नेकी के काम का इरादा करे मगर उसको अंजाम ना दे तो उसके नामाऐ आमाल में इसका एक अज्र लिखो और अगर इसको अंजाम दे तो उसके नामाऐ आमाल में इसके मिस्ल 10 से लेकर 700 गुना तक नेकियां लिखो।

मुस्लिम शरीफ़ में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) से रिवायत है के रसूले अकरम ने फ़रमायाः

((لو یعلم المؤمن ما عند اللہ من العقوبۃ ما طمع بجنتہ أحد، ولو یعلم الکافر ما عند اللہ من الرحمۃ ما قنط من رحمتہ أحد))

अगर मोमिन को मालूम हो जाता के अल्लाह का अ़ज़ाब कितना है, तो कोई भी उसकी जन्नत की लालच ना करता, और अगर काफ़िर जान लेता के अल्लाह के पास रहमत कितनी है तो कोई जन्नत से ना उम्मीद ना होता।

तिरमिज़ी, हाकिम की मुस्तदरक, इब्ने हिब्बान और बैहक़ी में रिवायत है जिसे इमाम अलज़ेहबी ने सही बताया है, हज़रत इब्ने उमर (رضي الله عنه)  कहते हैं के उन्होंने रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) को फ़रमाते सुनाः

((کان الکفل من بني إسرائیل لا یتورع من ذنب عملہ، فأتتہ امرأۃ فأعطاھا ستین دیناراً علی أن یطأھا فلما أرادھا عن نفسھا ارتعدت وبکت، فقال ما یبکیک؟ قالت: لأن ھذا عمل ما عملتہ قط، وما حملني علیہ إلا الحاجۃ، فقال: تفعلین أنت ھذا من مخافۃ اللہ! فأنا أحری، اذھبي فلک ما أعطیتک، وو اللہ ما أعصیہ بعدھا أبداً، فمات من لیلتہ، فأصبح مکتوب علی بابہ: إن اللہ قد غفر للکفل فعجب الناس من ذٰلک))

बनी इसराईल के एक शख़्स जो अपनी बद आमालियों से बेख़ौफ़ था, उसके पास एक औरत आई जिसे उस ने साठ दीनार इसलिए दिए के वो इसके साथ बदकारी करे, जब उस औरत के साथ बदकारी का इरादा किया तो औरत काँप गई और रोने लगी, तो पूछा के तू रो क्यों रही है? औरत ने कहाः इसलिए के मैंने आज तक ये बुरा काम नहीं किया और आज ज़रूरत ने मुझे इस पर मजबूर कर दिया। (ये सुन कर) उस शख़्स ने कहाः ख़ौफे़ ख़ुदा से तेरी ये हालत हो गई, मुझे तो और ज़्यादा डरना चाहिऐ। जा जो कुछ मैंने तुझ को दिया वो माफ़ किया, ख़ुदा की क़सम आज के बाद मैं कोई बुरा काम ना करूंगा। उसी रात उसकी वफ़ात हो गई। सुबह उसके दरवाज़े पर लिखा हुआ था के अल्लाह ने उस शख़्स की मग़फ़िरत कर दी, इस पर लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ।

इब्ने हिब्बान में हज़रत अबू हुरैराह (رضي الله عنه) ने आँहज़रत (صلى الله عليه وسلم) से एक हदीसे क़ुदसी नक़ल की है अल्लाह سبحانه وتعالیٰ फ़रमाता हैः

((وعزتي لا أجمع علی عبدي خوفین وأمنین إذا خافني في الدنیا أمنتہ یو القیامۃ وإذا أمنني في الدنیا أخفتہ یوم القیامۃ))

मेरी इज़्ज़त की क़सम! मैं अपने बंदे पर दो ख़ौफ़ और दो अमन या इत्मिनान यकजा नहीं करूंगा। अगर वो मुझ से दुनिया में डरेगा तो क़यामत के रोज़ उसको मामून रखूंगा और अगर वो दुनिया में मुझ से बेफ़िक्र रहता है तो यौमे क़यामत उसको ख़ौफ़ज़दा रखूंगा।

हाकिम ने मुस्तदरक में इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से रिवायत किया है के जब अल्लाह के रसूल (صلى الله عليه وسلم) ने ये आयत तिलावत फ़रमाईः

يٰۤاَيُّهَا الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا قُوْۤا اَنْفُسَكُمْ وَ اَهْلِيْكُمْ نَارًا وَّ قُوْدُهَا النَّاسُ وَ الْحِجَارَةُ عَلَيْهَا مَلٰٓىِٕكَةٌ غِلَاظٌ شِدَادٌ لَّا يَعْصُوْنَ اللّٰهَ مَاۤ اَمَرَهُمْ وَ يَفْعَلُوْنَ مَا يُؤْمَرُوْنَ

ऐ लोगो जो ईमान लाए हो, अपने आप को और अपने एहलो अ़याल को उस आग से बचाओ जिस का ईंधन इंसान और पत्थर होंगे, जिस पर सख़्त मिज़ाज ज़ोरावर और सख़्त 

गीर फ़रिश्ते मुक़र्रर होंगे।
(तर्जुमा मआनीये क़ुरआने अ़ज़ीमः तहरीम-06)

तो एक लड़का बेहोश हो गया। आप  (صلى الله عليه وسلم) ने अपने दस्ते मुबारक को उसके दिल पर रखा और जब लड़के ने हरकत की तो आप ने उससे फ़रमायाः

ऐ बच्चे! कहो! “ला इलाह इल्लल्लाहल्लल्लाह” उस लड़के ने कहा “ला इलाह इल्लल्लाहल्लल्लाह” तो आप  ने उस लड़के को जन्नत की बशारत सुनाई। इस पर आप के अस्हाब ने फ़रमायाः क्या हमारे दरमियान? आप ने फ़रमायाः क्या तुम ने अल्लाह سبحانه وتعالیٰ का ये फ़रमान नहीं सुनाः ये उसके लिए है जिसे मेरे हुज़ूर पेशी का ख़ौफ़ हो, और जो मेरी वईद (चेतावनी) से डरे। (तर्जुमा मआनीये क़ुरआन: इब्राहीम-14)

बैहक़ी और हाकिम की मुस्तदरक में हज़रत आईशा (رضي الله عنه)ا से रिवायत है जिसे अलज़ेहबी ने सही रिवायत बताया है फ़रमाती हैं के मैंने रसूले अकरम से अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के इस क़ौल के बारे में दरयाफ़्त कियाः

وَ الَّذِيْنَ يُؤْتُوْنَ مَاۤ اٰتَوْا وَّ قُلُوْبُهُمْ وَجِلَةٌ اَنَّهُمْ اِلٰى رَبِّهِمْ رٰجِعُوْنَۙ
और जो लोग देते हैं जो कुछ भी देते हैं और उनके दिल कपकपाते हैं के वो अपने रब की तरफ़ लौटने वाले हैं। (तर्जुमा मआनिये क़ुरआने अ़ज़ीमः मोमिनून -60)

मैंने पूछा कि क्या ये उन लोगों के ताल्लुक़ से है जो ज़िना करें और शराब पिएं। इब्ने साबिक़ की रिवायत के मुताबिक़- क्या वो शख़्स मुराद है जो ज़िना करे, चोरी करे और शराबनोशी करे, तो आप ने फ़रमायाः

(( لا، وفي روایۃ وکیع لا یابنت أبي بکر أو بنت الصدیق، ولکنہ الرجل یصوم ویصلي ویتصدق وہو یخاف أن لا یقبل منہ))
नहीं ऐ दुख़्तरे अबूबक्र (या दुख़्तरे सिद्दीक़) बल्कि उस शख़्स के ताल्लुक़ से है जो रोज़े रखे, नमाज़़ें पढ़े, सदक़ा करे और फिर भी इन सब के बावजूद डरे के कहीं ये चीज़ें (दरबार इलाही में) क़ुबूल ना की जाऐं।

इब्ने माजा में हज़रत सौबान (رضي الله عنه) से रिवायत है के नबी अकरम ने फ़रमायाः

((لأعلمن اقواماً من أمتي یأتون یوم القیامۃ بحسنات أمثال جبال تھامۃ بیضاً، فیجعلھا اللہ ھباءً منثوراً، فقلت: یا رسول اللہ صفھم لنا، حلھم لنا ألا نکون منھم ونحن لا نعلم، قال: أما إنھم من إخوانکم، من جلدتکم، ویأخذون من اللیل کما تأخذون، ولکنھم أقوام إذا
 خلوا بمحارم اللہ انتھکوھا))

मैं अपनी उम्मत में कुछ ऐसे लोगों को जानता हूँ जो क़यामत के दिन तिहामा के सफ़ैद पहाड़ों के मानिंद नेकियां लेकर आयेंगे, लेकिन अल्लाह سبحانه وتعالیٰ के नज़दीक उनकी कोई क़ीमत ना होगी। मैंने अ़र्ज़ किया के ऐ अल्लाह के रसूल आप उनके बारे में हमें बता दीजिए ताके हम उनकी तरह ना हों क्योंकि हम उनको नहीं जानते। आप ने फ़रमायाः वो तुम्हारे ही भाई हैं और तुम्हारी ही चमड़ियों में से हैं, तुम्हारी तरह ही वो रातें गुज़ारते हैं, लेकिन वो ऐसे हैं के जब वो अकेले होते हैं तो महारिमे इलाही (अल्लाह की हराम की हुई चीज़ों) को पामाल करते हैं।

हज़रत अ़ब्दुल्लाह बिन मसऊ़द (رضي الله عنه) से दो रिवायतें हैं, एक रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم)  की हदीस है और दूसरा ख़ुद उनका क़ौल हैः

((إن المؤمن یری ذنوبہ کأنہ قاعد تحت جبل یخاف أن یقع علیہ، وإن الفاجر یری ذنوبہ کذباب مر علی أنفہ فقال بہ ھکذا قال أبو شھاب بیدہ
 فوق أنفہ ۔۔۔ ))
मोमिन अपने गुनाहों को इतना बड़ा जानता है गोया के पहाड़ के नीचे बैठा हो और पहाड़ इस पर गिरने के क़रीब हो जब के फ़ाजिर अपने गुनाहों को मक्खी के बराबर समझता है जो उसकी नाक पर बैठ गई हो और उसको ऐसे कर देता है फिर अपने हाथ से इशारा किया (हज़रत अबू शिहाब कहते हैं के इस इशारे का मानी है के वो हाथ से उड़ा देता है।)
मुस्लिम शरीफ़ में है के हज़रत साद (رضي الله عنه) कहते हैं के मैंने रसूले अकरम को फ़रमाते सुनाः
((إن اللہ یحب العبد التقي الغني الخفي))
अल्लाह سبحانه وتعالیٰ अपने मुत्तक़ी, दुनिया से बेनियाज़ और अल्लाह से ख़ाइफ़ रहने वाले बंदे को मेहबूब रखता है।

इब्ने हिब्बान में रिवायत है के उसामा बिन शुरैक कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने फ़रमायाः

((ما کرہ اللہ منک شیئاً فلا تعلہ إذا خلوت))
जब तुम अकेले हो तो भी ऐसा अ़मल ना करो जो अल्लाह سبحانه وتعالیٰ को नापसंद हो।

अ़ब्दुल्लाह बिन उ़मर (رضي الله عنه) कहते हैं के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) से दरयाफ़्त किया गया के कौन से लोग अफ़ज़ल हैं? आप  ने इरशाद फ़रमायाः

))قال: کل مخموم القلب صدوق اللسان، قالوا صدوق اللسان نعرفہ فما مخموم القلب؟ قال ھو التقي النقي لا إثم فیہ ولا بغي ولا غل ولا حسد))
हर मख़्मूमुल क़ल्ब और सादिक़ उल्लिसान शख़्स अफ़ज़ल है। सहाबा ने कहाः ऐ रसूलुल्लाह (صلى الله عليه وسلم) हम सादिक़ उल्लिसान को तो जानते हैं मगर ये मख़्मूम अलक़ल्ब कौन है? तो आप ने फ़रमायाः मुत्तक़ी, पाक साफ़ जिस के अंदर ना गुनाह हो, ना ज़ुल्म हो, ना ख़यानत हो और ना ही हसद हो।

तिरमिज़ी शरीफ़ में है के अबू अमामा (رضي الله عنه) नबी अकरम (صلى الله عليه وسلم) से रिवायत करते हैं

((إن أغبط أولیاءي عندي لمؤمن خفیف الحاذ ذو حظ من الصلاۃ، أحسن عبادۃ ربہ، وأطاعہ في السر، وکان غامضا في الناس لا یشار إلیہ بالأصابع، وکان رزقہ کفافاً فصبر علی ذالک، ثم نفض بیدہ فقال عجلت منیتوہ قلت
 بواکیہ قل تراثہ))
मेरे सब से ज़्यादा क़ाबिले रश्क दोस्तों में वो मोमिन हैं जो (दुनिया में) कम हिस्से वाला हो और कसरत से नमाज़ पढ़ने वाला हो, अपने रब की अच्छी तरह इ़बादत करता हो और तन्हाई में उसकी फ़रमां बरदारी करता हो, लोगों में इतना शौहरत याफ़्ता ना हो के लोगों में उसका ज़िक्र आम हो, बक़द्रे किफ़ाफ़ रोज़ी मिलती हो और उस पर सब्र करता हो, फिर आप ने अपनी उंगली से इशारा फ़रमाया यानी वो दुनिया से जल्दी गुज़र जाता हो, उसकी मौत पर आँसू बहाने वाले कम हों और उसने बड़ा क़लील (बहुत कम) विरसा छोड़ा हो।
हाकिम ने मुस्तदरक में सही सनद से रिवायत किया है के हज़रत बहज़ बिन हकीम कहते हैं के ज़रार बिन अबी औफ़ा (رضي الله عنه) ने बनी क़शीर की मस्जिद में हमारी इमामत की और सूरह मुदस्सिर तिलावत की, जब वो ( فَاِذَا نُقِرَ فِي النَّاقُوْرِۙ) (पस जब नाक़ूर (ज़मीन) को क़ुरैद लिया जाऐगा: मुदस्सिर-08) पर पहूंचे तो वो गिर गए और उनकी वफ़ात हो गई।
मुस्तदरक में मुस्लिम की शर्त पर हज़रत इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) से मरवी है के रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) ने जंगे बदर में फ़रमायाः

((من لقي منکم العباس فلیکفف عنہ، فإنہ خرج مستکرھا، فقال أبو حذیفۃ بن عتبۃ: أنقتل آبائنا وإخواننا وعشائرنا، وندع العباس واللّٰہ لأضربنہ بالسیف، فبلغت رسول اللہ ا فقال لعمر بن الخطاب: یا أبا حفص قال عمر رضی اللہ عنہ إنہ لأول یوم کناني فیہ بأبي حفص یضرب وجہ عم رسول اللہ بالسیف فقال عمر: دعني فلأضرب عنقہ فإنہ قد نافق، وکان أبو حذیفۃ یقول: ما أنا بآمن من تلک الکلمۃالتي قلت، ولا أزال خائفاً حتی یکفرھا اللہ عني بالشھادۃ۔ قال: فقتل یوم الیمامۃ شھیداً))

तुम में जिस का सामना हज़रत अ़ब्बास (رضي الله عنه) से हो वो उनसे दरगुज़र करे क्योंकि उनको ज़बरदस्ती लाया गया है, तो अबू हुज़ैफ़ा बिन उ़तबा (رضي الله عنه) ने कहाः क्या हम अपने बाप, भाईयों और ख़ानदान वालों को क़त्ल करें और अ़ब्बास (رضي الله عنه) को छोड़ दें, नहीं, वल्लाह में तलवार से उनका काम तमाम कर दूंगा। ये बात रसूले अकरम (صلى الله عليه وسلم) तक पहूँची तो आपने कहाः ऐ अबू हफ़्स (उ़मर कहते हैं के ये पेहला मौक़ा था के आपने मुझे अबू हफ़्स की कुनिय्यत से मुख़ातिब किया था) क्या रसूल के चचा के चेहरे पर तलवार मारी जाऐगी। इस पर उ़मर (رضي الله عنه) ने कहाः मुझे इज़ाज़त दीजिए, मैं इस की गर्दन मार दूं ये मुनाफ़िक़ हो गया है। अबू हुज़ैफ़ा कहा करते थेः मैं इस (गुस्ताख़ाना) बात पर जो के मैंने कही थी, कभी भी चैन से नहीं रहा, हमेशा ख़ौफ़ज़दा रहा करता हूँ यहाँ तक कि अल्लाह शहादत के ज़रीये उसको माफ़ कर दे। इब्ने अ़ब्बास (رضي الله عنه) कहते हैं के अबू हुज़ैफ़ा ने जंगे यमामा में जामे शहादत नोश किया।


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