इसी तरह क़ुरआन ने दावत को लफ़्ज़ ‘शहादत’ के ज़रीये बयान किया है यानी लोगों के
मुताल्लिक़ गवाही। अल्लाह (ربّ
العزّت) का इरशाद है :
﴿وَكَذَلِكَ جَعَلْنَاكُمْ
أُمَّةً وَسَطاً لِّتَكُونُواْ شُهَدَاء عَلَى النَّاسِ وَيَكُونَ الرَّسُولُ
عَلَيْكُمْ شَهِيداً﴾
“और हमने तुम्हें उम्मते-वस्त (दरमयानी उम्मत) बनाया ताकि तुम इंसानों पर गवाह
रहो और रसूल तुम पर गवाह हो ।“ (सूरह बक़रा: 143)
रसूल (صلى الله عليه وسلم) फ़रमाते हैं :
(( . .. و المؤمنين شهود الله في الأرض
))
“....मोमिनीन ज़मीन पर अल्लाह के गवाह हैं ” (रवाह इब्ने माजा)
और रसूल (صلى الله عليه
وسلم) फ़रमाते हैं :
(( ليبلغ الشاهد الغائب ))
“हर एक जो भी हाज़िर (जो भी यहां गवाह) है उन तक उसे पहुंचाए
जो यहां ग़ायब (ग़ैर मौजूद) हैं ।” हदीस
इसी तरह क़ुरआन ने भी दावत को लफ़्ज़ तब्लीग़ (पहुंचाना) से जतलाया है। अल्लाह (ربّ
العزّت) का इरशाद है :
﴿يَا
أَيُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنزِلَ إِلَيْكَ مِن رَّبِّكَ وَإِن لَّمْ
تَفْعَلْ فَمَا بَلَّغْتَ رِسَالَتَهُ وَاللّهُ يَعْصِمُكَ مِنَ النَّاس﴾
“ऐ नबी (मुहम्मद صلى الله عليه وسلم) ! तब्लीग़ कीजिए इस पैग़ाम की जो तुम्हारे
रब ने तुम पर नाज़िल किया है । और अगर तुम ने तब्लीग़ ना की तो तुम्हारे रब के इस पैग़ाम
को तुम ने लोगों तक नहीं पहुंचाया ।” (सूरह माइदा: 67)
और रसूल भी फ़रमाते हैं :
(( بلغوا عني ولو آية ))
“तब्लीग़ करो
एक आयत भी अगर तुम्हें मेरी तरफ़ से मिल जाये” (रिवाया बुख़ारी)
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